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Sunday 23 August 2020

बिहार चुनाव


29 नवंबर से पहले बिहार में नई सरकार

दिल्ली। बिहार विधानसभा का चुनाव कराने और न कराने की चर्चा पर रविवार को करीब-करीब विराम लग गया है। चुनाव आयोग के एक बड़े अधिकारी ने ऑफ द रिकार्ड यह संकेत दिया कि बिहार में समय पर ही चुनाव होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि 29 नवंबर  से पहले ही बिहार में नई सरकार का गठन हो जाएगा।

कोरोना के कारण चुनाव को टालने की हो रही थी बात

 कोरोना महामारी के कारण कुछ राजनीतिक दल चुनाव को टालने की मांग कर रहे थे। उधर दलों के अंदर भगदड़ मची है। बड़े-बड़े नेता पाले बदल रहे हैं। इस बीच निर्वाचन आयोग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने इसका खुलासा किया कि बिहार में विधानसभा चुनाव समय पर होगा। 

कई दलों ने चुनाव टालने की मांग की

राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने महामारी के समय चुनाव कराने के औचित्य पर सवाल उठाया है। राजग की घटक लोकजनशक्ति पार्टी ने महामारी के मद्देनजर चुनाव टालने का अनुरोध किया है। एनसीपी और नेशनल पीपुल्स पार्टी जैसे कुछ अन्य दलों ने भी चुनाव टालने की मांग की है। 

-नवंबर में चुनाव कराने के आसार

बिहार विधानसभा में 243 सदस्य हैं। विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है। इस कारण उससे पहले नई सरकार का गठन हो जाएगा।




Saturday 22 August 2020

बिहार की परीक्षा में फडणवीस

 


बिहार के गौरव को भुनाने निकले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार चुनाव में  भाजपा की कमान संभालने जा रहे देवेंद्र फडणवीस यहां के गौरवशाली इतिहास और परंपरा को भुनाने की कोशिश शुरू कर दी है।  बिहार की जनता किस रूप में लेती है यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना सच है कि बिहार के भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। भाजपाइयों में  भाग्य खुलने की उम्मीद जगी है।

युवाओं को किया उत्साहित

शनिवार को भाजपा की दो दिवसीय प्रदेश कार्यसमिति की वर्चुअल बैठक में देवेंद्र फडणवीस बतौर मुख्य अतिथि  शामिल हुए  और उन्होने बताया कि 25- 26 अगस्त को बिहार आ जाएंगे। इसके बाद पार्टी से जो टास्क मिलेगा उसे पूरी तन्मयता से पूरा करेंगे। आज की वर्चुअल बैठक में  उन्होंने बिहार के गौरवशाली इतिहास और बिहार की अस्मिता को रेखांकित कर अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया।  फडणवीस ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता के माध्यम से भाजपा कार्यकतार्ओं में उत्साह जगाते हुए आह्वान किया कि पार्टी के कार्यकर्ता पत्थर से पानी निकालने वाले हैं। लोगों की तालियां भी मिलीं। उन्होंने बिहार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जमीन पर  चाणक्य से लेकर लोकनायक तक को याद किया। भाजपा नेता ने  कहा कि माता सीता, गुरु गोविंद सिंह, चाणक्य और सम्राट अशोक इसी बिहार से हैं।  उन्होंने युवाओं को आह्वान करते हुए कहा कि देश में जहां 50 फीसदी तो बिहार में 58 फीसदी युवा हैं। इन्हीं युवाओं की बदौलत हम राज्य को आगे ले जाएंगे। 

 एनडीए सरकार की तारीफ

फडणवीस ने राजग सरकार की तारीफ कर अपना गठबंधन धर्म भी निभाया। उन्होंने कहा कि इस बार होने वाला चुनाव बिहार का भाग्य है। यह चुनाव बिहार को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा और नया इतिहास बनेगा। पिछले 15 सालों में बिहार विकास की पटरी पर आया है। अगर इसे दौड़ानी है तो  बिहार में भी एनडीए सरकार जरूरी है। उन्होंने कहा क्यों नहीं पूरा विश्वास है कि बिहार एक बार फिर अपने गौरवशाली अवश्य प्राप्त करेगा। कोरोना औऱ बाढ़ की चर्चा करते भाजपा कार्यकर्ताओं को उत्साहित करते हुए फडणवीस ने कहा कि कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती। भाजपा कार्यकर्ता इसी संघर्ष और चुनौती में लोगों से संपर्क करें। लोगों को केंद्र व राज्य सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताएं।

विरोधियों पर वार

उन्होंने कहा कि लालू यादव के शासनकाल में बिहार विनाश के कगार पर औऱ गर्त में चला गया था। राजद के कार्यकाल में बिहार 25 से 30 साल पीछे चला गया। एनडीए ने 15 साल में दोगुनी क्षमता से काम करते हुए बिहार को यहां तक लाया है। यह ऐतिहासिक मौका है और इसे हमें चूकना नहीं है। एनडीए सरकार ने कमजोर तबके तक विकास को पहुंचाया है। 20 लाख करोड़ का पैकेज ही नवभारत की नींव है। 


बिहार में सिर्फ बिहारी मास्टर

 


शिवराज सिंह चौहान के रास्ते पर चले नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रास्ते पर निकल पड़े। यहां प्राथमिक विद्यालय में  सिर्फ बिहार के लोगों को ही नौकरी मिलेगी।  इसी महीने कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि यहां सिर्फ अपने राज्य के लोगों को ही सरकारी नौकरी मिलेगी।  इसके लिए कानूनगत व्यवस्था की जाएगी।

बिहार के निवासी ही आवेदन कर सकेंगे

 शनिवार को बिहार सरकार की ओर से अधिसूचित बिहार राज्य नगर प्रारंभिक विद्यालय सेवा तथा बिहार राज्य पंचायत प्रारंभिक विद्यालय सेवा (नियुक्ति, प्रोन्नति, स्थानांतरण, अनुशासनिक कार्रवाई एवं सेवाशर्त) नियमावली, 2020 में इसका स्पष्ट प्रावधान कर दिया गया है कि बिहार में इन दोनों नियोजन नियमावलियों के तहत नियुक्ति में बिहार के निवासी ही आवेदन कर सकेंगे। 

72 हजार शिक्षक पद सिर्फ बिहारियों के लिए

स्पष्ट है कि अगले कुछ दिनों में करीब 72 हजार सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों में शिक्षक पद पर सिर्फ और सिर्फ बिहार के निवासी ही नियुक्त हो सकेंगे। अब झारखंड के लोगों को भी इसमें एंट्री नहीं मिलेगी। हालांकि  2006 से राज्य में लागू माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक शिक्षकों के नियोजन में यह व्यवस्था लागू है। इसके तहत बिहार के हाईस्कूलों और 10 प्लस 2 में केवल बिहार के निवासी ही नियुक्त हो रहे हैं। वर्ष 2012 से लागू नियोजन नियमावली में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं होने से दूसरे राज्यों के खासकर सीमाई इलाकों में पड़ोसी राज्यों के भी कुछ शिक्षक नियुक्त हो गये हैं।  ऐसे में प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्त में  करीब आठ वर्षों के अंतराल के बाद एक बार फिर बिहार के अभ्यर्थियों तक ही 72 हजार प्राथमिक स्कूलों में नियुक्ति का अवसर केन्द्रित कर दिया है। 


Friday 21 August 2020

बिहार चुनाव के लिए गाइडलाइन जारी

 


बदला अंदाज : चुनाव के दौरान बूथों पर साबुन-पानी,  वोटरों के लिए शेड

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने  शुक्रवार को गाइडलाइन जारी कर दिए  हैं। कोरोना संक्रमण के कारण कई बड़े बदलाव हुए हैं। उम्मीदवारों के पास ऑनलाइन नामांकन, शपथ पत्र और सिक्युरिटी मनी जमा करने का विकल्प  होगा। चुनाव प्रचार, मतदान और मतगणना की प्रक्रिया भी बदलेगी। 

 मतदान के लिए इंतजार करने को लेकर बूथ पर एक शेड बनेगा जहां पर्याप्त कुर्सी और दरी होगी। बूथों पर साबुन और पानी रखा जाएगा।  मास्क लगाकर रखना अनिवार्य कर दिया गया है। जिसके पास मास्क नहीं होगा उन्हें मास्क दिया जाएगा। पहचान की जरूरत होने मास्क हटाया भी जा सकता है।  दिशा निर्देश के पालन नही किये जाने पर आपदा प्रबंधन कानून,2005 के तहत कार्रवाई की जाएगी। भारत निर्वाचन आयोग ने 11 अगस्त तक सभी राजनीतिक दलों से चुनाव और प्रचार को लेकर सुझाव मांगे थे। 


ऐसे शुरू होगी प्रकिया 

  •  नामांकन पत्र, शपथ पत्र व सिक्युरिटी मनी ऑनलाइन दाखिल कर सकेंगे।
  • प्रत्याशी को  ट्रेजरी में भी नकद पैसा जमा कर सकेंगे। 
  • नामांकन में दो व्यक्तियों को ही रहने की अनुमति होगी।
  • प्रत्याशी समेत 5 लोगों को घर-घर प्रचार की अनुमति । 
  • रोड शो में  वाहन के बीच भी सोशल डिसटेंसिंग का पालन होगा। 
  • कोविड 19 के दिशा निर्देश के अनुसार ही सभा या रैली। 


बूथों पर व्यवस्था

  •  बूथों को सैनिटाइज किया जाएगा।
  • मतदाताओं की थर्मल स्कैनिंग की जाएगी। 
  • हस्ताक्षर और बटन दबाने के लिए मतदाता को ग्लव्स मिलेगा। 


मतगणना प्रक्रिया

  • एक हॉल में सात से अधिक टेबुल नहीं 
  • बड़े पर्दे पर कंट्रोल यूनिट के परिणाम को प्रदर्शित किया जाएगा। 
  • पोस्टल बैलेट की गिनतीं के लिए अलग से हॉल  होगा। 

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गणेश चतुर्थी

 


त्मविश्वास बढ़ानेवाले ऊर्जापुंज हैं भगवान श्रीगणेश

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ 

अर्थात वक्र सूंड वाले, बड़े शरीर के मालिक और करोड़ों सूर्य के बराबर तेज प्रतिभाशाली। हे देव, आप हमेशा हमारे सभी कार्यों को बाधा रहित पूरा करें। 

आज गणेश चतुर्थी है। इस अवसर पर हम अपने आराध्य देव भगवान गणेश की उपासना करते हैं। उनकी उपासना से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। हिन्दु दर्शन के मुताबिक कोई काम शुरू करने से पहले यदि विघ्नहर्ता प्रथम पूज्य श्रीगणेश का स्मरण करें तो निश्चित रूप से हमें सफलता मिलती है। हर बाधा को आसानी से पार कर लेते हैं। भगवान श्रीगणेश की आराधना से लगता है कि हमने ऊर्जा के पुंज को प्राप्त कर लिया है। मानसिक तौर पर हम सकारात्मक हो जाते हैं। मनन और चिंतन के प्रतिफल में  आत्मविश्वास बढ़ जाता है। 

दस दिनों का उत्सव

भारतवर्ष समेत पूरे विश्व में हिन्दु दर्शन में आस्था रखनेवाले लोग गणेश चतुर्थी को धूमधाम के साथ मनाते हैं। जहां तक संभव होता है लोग सार्वजनिक या निजी स्तर पर गणपति की प्रतिमा को स्थापित करते हैं। गणेश उत्सव भाद्रपद की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानी दस दिनों तक चलता है। चतुर्दशी को इनका विसर्जन किया जाता है। 

कोरोना वायरस का असर 

गणेश चतुर्थी के मौके पर महाराष्ट्र में विघ्नहर्ता विनायक श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना जोर-शोर से की जाती है। बड़े-बड़े पंडालों में प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोग अपने घरों में पूजा-अर्चना करेंगे। सार्वजनिक उपासना पूरे देश में निषिद्ध है। 

गणेश चतुर्थी की मान्यताएं

भगवान शिव यायावर किस्म के थे। वर्षों तक वह प्रकृति के साथ अलग-अलग स्थानों पर साधना में लीन रहते थे। माता पार्वती से कोई संपर्क नहीं रहता था। माता अकेली रहती थीं। उनका मन एकाकीपन से विह्वल हो जाता था। कभी-कभार स्त्री सुलभ मातृत्व कामना भी उनके हृदय को व्याकुल कर देता था। शिव यक्ष स्वरूप माने जाते हैं। इस कारण पार्वती उनके बच्चे का धारण नहीं कर सकती थी। 

श्रीगणेश जी का अवतरण

श्रीगणेश जी के अवतरण को लेकर शास्त्रों में कई तरह की कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। हर कथा इस ओर संकेत करता है कि भगवान गणेश का प्रादुर्भाव माता पार्वती के हाथों हुआ है। कहा जाता है कि माता ने अपने शरीर पर लगे उबटन (चंदन-हल्दी का लेप) को लेकर मिट्टी से मिलाकर एक पुतले का निर्माण किया।  फिर उसे बच्चे का आकार दिया और उसमें प्राण डाल दिए। बाद में वह भगवान गणेश के रूप में प्रचलित हुए। वर्तमान संदर्भ में भगवान गणेश की उत्पति की कहानी कोरी कल्पना महसूस होती है। पर, आधुनिक विज्ञान में एपिथेलियल कोशिका से यह संभव हो रहा है।

 गणेश से अभिज्ञ शिव

गणेश का प्रादुर्भाव भगवान शिव की अनुपस्थित में हुआ। शंकर भगवान इससे अभिज्ञ थे। कई वर्षों के बाद जब वह अपने गणों के साथ वापस लौटे तब श्रीगणेश 10-12 साल के हो चुके थे। उस समय पार्वती स्नान कर रही थीं। माता ने गणेश जी को आदेश दिया कि - देखना कोई इधर न आ जाए। भगवान शिव जब घर में  प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे तब गणेश जी ने उन्हें दरवाजे पर रोक दिया। इससे भगवान शंकर को गुस्सा आ गया। उन्होंने बिना विचार किए अपनी तलवार से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसी कारण कहते हैं गुस्से में फैसला नहीं लेना चाहिए। उसका अंत पश्चाताप ही होता है। भगवान शिव ने अपने ही बच्चे को खो दिया। 

क्यों कहा जाता है गणपति  

खून से लाल तलवार के साथ भगवान को घर में प्रवेश करते देख माता पार्वती सन्न रह गईं। उन्हें हादसे का भान हो गया। वह आपे से बाहर हो गईं। शिव को खरी-खोटी सुनाने लगीं। भगवान शिव माता पार्वती को बहुत समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, अपने सृजन किया और हमने संहार कर दिया। मगर, माता ने एक न सुना। उन्हें अपना लाड़ला चाहिए। इसके बाद भगवान शंकर ने अपने गणों में से एक का सिर ले लिया और बालक के सिर पर लगा दिया। आधुनिक मेडिकल साइंस इसे प्रत्यारोपण मानता है। गणेश चतुर्थी वही दिन है। चूंकि उन्होंने गणों के मुखिया का सिर काटकर लिया था और इस बालक के धड़ पर लगाया था, तो उन्होंने कहा, अब से तुम एक गणपति हो।

सिर हाथी का क्यों

यह एक रोचक पहलू है। कुछ लोगों का कहना है कि हाथी का सिर होना एक कलाकार की कल्पना है जिन्होंने पहली बार गणेश की तस्वीर को उकेरा। माना जाता है कि गणों के अंग में हड्डियां नहीं होती और हाथी के सूंड में भी हड्डी नहीं होती। इसी कारण कलाकार ने गण से गज की कल्पना की होगी। 

हालांकि गणेशजी को गज का मुख लगाए जाने का रहस्य गणेश पुराण में मिलता है। भगवान विष्णु से दुर्वाशा ऋषि को पारिजात पुष्प मिला था। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप वह देवराज इंद्र को दे दिया और कहा कि जिसके सिर पर यह पुष्प रखा जाएगा वह कुशाग्र होगा। उस वक्त अप्सरा रंभा के प्रेम में कामुक देवराज ने पुष्प का अनादर किया और उसे हाथी के सिर पर रख दिया। ऐसा करते ही देवराज इंद्र का तेज समाप्त हो गया और हाथी मतवाला हो गया। हाथी लोगों को उत्पीड़ित करने लगा। हाथी के मद को कम करने के लिए ईश्वरीय लीला हुई और उसका सिर काट कर बालक गणेश के धड़ से जोड़ दिया गया। पारिजात पुष्प का आशीष भी बालक गणेश को मिला और वह कुशाग्र हो गए।

गणेश जी का अवतार 

भगवान विष्णु और शिव की तरह भगवान गणेश भी घरती पर पाप को खत्म करने के लिए आठ अवतार लिए। इनमें सबसे प्रमुख है- विघ्नहर्ता अवतार। इसमें उन्होंने सिंधु नाम के एक राक्षस का वध किया था। गणेश पुराण में उल्लेखित है कि दैत्य सिंधु कठिन तपस्या कर भगवान विष्णु से वरदान ले लिया था। वरदान स्वरूप श्रीहरि को बैकुंठ छोड़कर सिंधु के नगर में  निवास करना पड़ा। वह बंदी की तरह जीवन गुजारने लगे और सिंधु का देवताओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ गया। इससे देवताओं में हाहाकार मच गया। शिवजी भी कैलाश पर्वत को छोड़कर चले गए। इस बीच भगवान विश्वकर्मा शिवजी से मिलने कैलाश पर आए। वहां विश्वकर्मा की मुलाकात गणेश जी से होती है। सर्वज्ञ भगवान गणेश विश्वकर्मा को देखते ही सब कुछ समझ गए थे। जबकि भगवान गणेश तब 7-8 साल के होंगे। उन्होंने विश्वकर्मा जी से पूछा - मुझसे मिलने आए हैं, तो मेरे लिए कोई उपहार लाए हैं? भगवान विश्वकर्मा ने

उन्हें अस्त्र-शस्त्र उपहार में दिए। इससे गणेशजी अति प्रसन्न हुए और खेल-खेल में वृकासुर नामक राक्षस को खत्म कर दिया। इससे खुश होकर देवताओं ने उनसे दैत्य सिंधु को खत्म करने की विनती की। 

दैत्य सिंधु का संहार

बालक गणेश महादैत्य सिंधु से जंग करने निकल पड़े। इधर सिंधु के नगर में इसकी चर्चा तेज हो गई कि एक बालक चूहे पर सवार होकर सिंधु से लड़ने आ रहा है। लोगों ने भगवान गणेश की खिल्ली उड़ाई। स्वयं दैत्य सिंधु खूब हंसा। इससे बालक गणेश का गुस्सा बढ़ता चला गया। उन्होंने अपने आपको सौ गुणा बड़ा कर लिया और भगवान विश्वकर्मा द्वारा प्राप्त आयुध से उस पर हमला कर दिया। असुर सिंधु को वहीं धराशाई होना पड़ा। तब से गणपति विघ्नहर्ता कहलाने लगे।

पूजा का शुभ मुहूर्त

 दिन के 11 बजकर सात मिनट से दोपहर एक बजकर 42 मिनट तक

शाम में चार बजकर 23 मिनट से सात बजकर 22 मिनट तक

रात में नौ बजकर 12 मिनट से 11 बजकर 23 मिनट तक है।


पूजा सामग्री 

पान, सुपारी, लड्डू, सिंदूर, दूर्वा घास


पूजा विधि

लाल वस्त्र चौकी पर बिछाकर भगवान को स्थान दें। चौकी पर अक्षत जरूर रखें। यह समृद्धि का प्रतीक है। इसके साथ कलश की स्थापना करें। कलश में जलभरकर उसके ऊपर नारियल रखकर चौकी के पास रख दें। प्रसाद के रूप में मोदक और लड्डू रखना चाहिए।


इस मंत्र का करें जाप

ऊं गं गणपतये नम:।

भगवान गणेश की पूजा से लाभ 

भगवान श्रीगणेश विघ्न विनाशक हैं। वह गणों के स्वामी हैं। मान्यता है कि उनकी उपासना से नौ ग्रहों का दोष खत्म हो जाता है। भगवान श्रीगणेश का जहां पूजन होता है, वहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का वास होता है।

कहां करें स्थापना

घर के मुख्य द्वार पर भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती हैं। भगवान श्रीगणेश को हल्दी अर्पित करना शुभ माना जाता है। हल्दी से श्रीगणेश का तिलक करने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। 

ध्यान देने योग्य तथ्य

घर के हर कमरे में श्रीगणेश की मूर्ति न रखें। पूजास्थल के अलावा स्‍टडी रूम में उनकी मूर्ति रखी जा सकती है। घर में श्रीगणेश की शयन या बैठी हुई मूर्ति शुभ होती है। कार्यस्थल पर जमीन को स्पर्श करते हुए खड़ी हुए मुद्रा में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति लगाएं। भगवान श्रीगणेश के चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा होना चाहिए।

                                                                                                             - तरुण कुमार कंचन

 


Thursday 20 August 2020

हरतालिका व्रत तीज

 


प्रेम की प्रगाढ़ता है हरतालिका व्रत तीज

तरुण कुमार कंचन

भारत की पहचान इसकी सभ्यता और संस्कृति है। यहां कण-कण में राम बसते हैं। श्रद्धा और आस्था के इस देश में प्रेम की प्रचुरता भी है। जहां प्रेम का वास होता है, वहां समर्पण सबसे आगे चलता है। हरतालिका तीज इसी समर्पण भाव का प्रतीक है।


क्यों कहते है तीज

भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने के कारण इसे तीज कहते हैं। इस बार यह व्रत शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य सिंह राशि और चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा।

शुभ मुहूर्त - पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 55 मिनट से लेकर रात नौ बजकर 8 मिनट तक होगा।

मनाने की परंपरा

बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ राजस्थान के भी कुछ इलाकों में भी सुहागिन महिलाएं इस व्रत को रखती हैं। दक्षिण भारत में भी इस पर्व को मनाया जाता है। वहां गौरी हव्वा के नाम से लोग जानते हैं।

अखंड सौभाग्य का व्रत

सावन और भादो शिव महिमा से परिपूर्ण है। भगवान शिव परिवार के साथ चलनेवाले देवताओं में अग्रणी हैं। मानव जाति पर उनकी असीम कृपा रहती है। इस कारण अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं इस व्रत को श्रद्धा से करती हैं। वह निर्जला रहती हैं। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित यह व्रत सुहागिन महिलाएं पति के दीर्घायु होने की कामना के साथ रखती हैं। परिवार पर उनका आशीष प्राप्त होता है। कहते हैं कि कुंवारी कन्या यदि इस व्रत को रखती हैं तो मनचाहा पति की इच्छा पूर्ण होती है।

हरतालिका तीज की कथा

घर्मग्रंथों में वर्णित है कि माता पार्वती ने सबसे पहले इस व्रत को रखा था। इसके बाद भगवान शिव ने उनसे विवाह किया। कथा कुछ प्रकार है- माता पार्वती के पिता हिमालय उनके विवाह के बारे में  सोच रहे थे। नारद जी ने हरि यानी विष्णु से पार्वती का विवाह कराने की सलाह हिमालय को दी। हिमालय ने भी अपनी सहमति दे दी। उधर माता पार्वती शिव को अपना सर्वस्व मान चुकी थी और उन्हें प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या भी की।

 मान्यता है कि माता पार्वती ने सुखे पत्ते खाकर शिव की साधना में लीन हो गई। सावन में निराहार रहीं। इस बीच भगवान विष्णु से विवाह की पूरी तैयारी कर ली गई। पार्वती विह्वल होने लगीं। उन्होंने पूरी कहानी अपनी सहेलियों को बता दी। हरि से विवाह नहीं रुकने की स्थिति में सहेलियों ने हरण कर उन्हें जंगल में छुपा दिया। पूरा सावन बीत गया मगर हिमालय को अपनी पुत्री का पता नहीं चला। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को पार्वती जी ने एक गुफा में रेत का शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा शुरू कर दी। तब शिव ने समाधि तोड़ी। उन्हें अपनी पत्नी बनने का वरदान दिया। सुबह होने पर पार्वती ने अपनी पूजा पूर्ण की और सहेलियों के साथ पारण किया।

दूसरी कथा यह है कि महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुन्धती ने इस व्रत को की और अपने पति सहित ऋषियों में ऊच्च स्थान प्राप्त किया।

पूजन सामग्री

माता पार्वती के लिए श्रृंगार सामग्री चूड़ी, कंघी, कुमकुम, सिंदूर, बिंदी, काजल, घी-तेल, बिछिया चढ़ाई जाती है। भगवान शिव के लिए धूप, दीप, फूल, बेलपत्र, आम के पत्ते, पान और मिठाई चढ़ाई जाती है। शिवजी को वस्त्र जरूर चढ़ाना चाहिए। 

पूजन विधि

 रेत या मिट्टी से शिव-पार्वती की प्रतीमा बनाई जाती है। शाम में प्रदोष काल में चौकी पर लाल कपड़ा या केले के पत्ते को बिछाकर उसपर प्रतिमाएं रखी जाती हैं। फूल और मालाओं उसे सजाया जाता है। इसके बाद चौकी के सामने कलश रख कर शिव-पार्वती की प्रतिमाओं पर जल छिड़ककर स्नान कराया जाता है। धूप, दीप, कर्पूर ,मेवा, पंचामृत और मिठाई चढ़ाई जाती है। माता पार्वती के लिए श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है। इसके बाद शिव और पार्वती से जुड़ी कथाएं पढ़ी जाती हैं। सुहागिन महिलाएं रात भर हर पहर पूजा करती हैं और भजन कीर्तन करती है। उस रात व्रती सोती नहीं है। सुबह उठकर शिव-पार्वती की आरती के बाद पारण करती हैं।

शिव पूजन मंत्र

ऊं हराय नम: । ऊं महेश्वराय नम: । ऊं शम्भवे नम: । ऊं शूलपाणये नम: । ऊं पिनाकवृषे नम: । ऊं शिवाय नम: । ऊं पशुपतये नम: । ऊं महादेवाय नम: 

माता पार्वती पूजन मंत्र

ऊं उमायै नम: । ऊं पार्वत्यै नम: । ऊं जगद्धात्र्यै नम: । ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम: । ऊं शांतिरूपिण्यै नम: । ऊं शिवायै नम: । 


अपशगुन माने जाते थे जगतगुरु रामभद्राचार्य Jagatguru Rambhadracharya was considered a bad omen

जो बालक बचपन में अपशगुन बन गया था। शादी विवाह में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता था। अपने लोग भी साथ नहीं ले जाते थे। आज पूरे दे...