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कलियुग के श्रीकृष्ण : बाबा खाटू श्याम Shrikrishna of kaliyug ; Baba Khatushyam
खाटूवाले श्याम बाबा ः अद्भुत दर्शन https://youtu.be/Cn60F1F-e_s |
क्या आप जानते हैं कि कलियुग में श्रीकृष्ण का अवतार किसे माना जाता है और क्यों उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार कहते हैं। पिछले सप्ताह मैं तीन दिनों के लिए राजस्थान भ्रमण पर था। उन दिनों मैंने वहां जयपुर के अलावा सीकर और चुरू जिलों के तीर्थस्थलों में माथा टेका। उनमें सबसे महत्वपूर्ण है बाबा खाटू श्याम बाबा का मंदिर। मुझे वहां खाटू श्याम जी का दर्शन हुआ। उनकी असीम कृपा मिली।
खाटू गांव में बाबा का मंदिर मंदिर के सामने अपार श्रद्धालु
आपको बता दूं कि सनातन धर्मस्थलों में बाबा खाटूश्याम जी का मंदिर श्रीकृष्ण के मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार खाटूश्याम जी का संबंध महाभारतकालीन है। भारतीय पुरात्व विभाग का कहना है कि खाटूश्याम जी के मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। हालांकि उसका कोई लिखित उल्लेख नहीं मिलता है। इतना सच है कि बाबा खाटूश्याम जी कलियुग में सबसे लोकप्रिय भगवान हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि सीकर जिले के खाटू गांव में बाबा का मंदिर है।
लखदातार बाबा
आपको बताते चलूं कि खाटूश्याम जी को लखदातार भी कहते हैं। कहा जाता है कि बाबा श्याम से भक्त जो भी मांगता है और जितनी बार मांगता है, वह अपने भक्तों को बार-बार देते हैं। लाखों-करोड़ों बार देते हैं। इसी कारण भक्त खाटूश्याम बाबा को लखदातार के नाम से पुकारते हैं।
क्षमता और ताकत से प्रभावित थे श्रीकृष्ण
सबसे दिलचस्प बात यह है कि खाटूश्याम जी का संबंध महाभारत से भी है। बताया जाता कि वे भीम के पोते थे। कहानियों के अनुसार बाबा खाटूश्याम की क्षमता और ताकत से भगवान श्रीकृष्ण बहुत ही प्रसन्न हुए थे। इसी कारण श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजने का वरदान दिया था। इन्हें बर्बरीक कहा गया।
हारने वालों को बाबा सहारा
आपको पता है कि बाबा खाटूश्याम को हारे का सहारा क्यों कहते हैं? एक कहानी है कि वनवास के दौरान जब पांडू पुत्र इधर-उधर घूम रहे थे, तब भीम का हिडिम्बा से मिलन हुआ था। उनसे एक पुत्र का जन्म हुआ। महाभारत में उसे घटोत्कच कहा गया है और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था। जब महाभारत का युद्ध तय था तब श्रीकृष्ण को आशंका थी कि बर्बरीक कहीं कौरवों की तरफ से युद्ध में शामिल न हो जाएं। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किसके पक्ष से शामिल होंगे। बर्बरीक का जवाब सीधा था, जो हारेगा वह उस पक्ष से लड़ाई में शामिल होंगे।
अपना सिर ही दान में श्रीकृष्ण को दे दिया
भगवान श्रीकृष्ण को भान था कि ऐसा हुआ तो पांडवों के लिए यह युद्ध उल्टा पड़ जाएगा। फिर क्या था? श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से एक दान की मांग की थी। बर्बरीक ने उन्हें दान देने की बात स्वीकार कर ली। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे उनका सिर ही दान में मांग लिया। बर्बरीक ने भी सिर दान कर दिया लेकिन उन्होंने युद्ध को अपनी आंखों से देखने की शर्त रख दी। श्रीकृष्ण ने इसे स्वीकार कर युद्धवाली एक ऊंची जगह पर कटे सिर को रख दिया। श्रीकृष्ण इस बलिदान से काफी खुश हुए और उन्हें कलियुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया।
अब सवाल उठता है कि खाटू में श्याम बाबा का मंदिर क्यों ?निशानी के साथ लेखक
पौराणिक कथाओं में इसका उल्लेख है कि कलियुग के आरंभिक काल में खाटू गांव में ही श्याम बाबा का सिर मिला था। कहते हैं जहां बाबा का मंदिर है वहां एक गाय के थन से अपने आप ही दूध निकलने लगा। इसकी खबर जब खाटू के आसपास के गांवों को लगी तो सबों ने उस जगह की खुदाई की। वहां खाटू श्याम जी का सिर मिला। इसके बाद वहां के तत्कालीन राजा रूप सिंह ने मंदिर बनवाया। उसमें खाटूश्याम जी की मूर्ति स्थापित की गई। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार 1027 ई. में मंदिर को दोबारा बनाया गया। सम्प्रति पत्थरों और संगमरमर से मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर के द्वार को सोने की पत्ती से सजाया गया है। सीकर जिले में जीण माता मंदिर और मनोकामना लक्ष्मी मंदिर भी दर्शनीो बय हैं। इनके बारे में अगले वीडियो में बात करुंगी।
आने-जाने और रहने की पूरी व्यवस्था
राजस्थान की राजधानी जयपुर से सीकर की दूरी करीब 80 किलोमीटर है। दिल्ली से जयपुर के लिए सीधी हवाई सेवा के अलावा ट्रेन और सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है। यूं खाटूश्याम के पास रींगस जंक्शन है। यहां से बाबा के मंदिर की दूरी 18.5 किमी है। स्टेशन से निकलने के बाद आपको मंदिर के लिए टैक्सी और जीप ले सकते हैं। श्रीमाधोपुर रेलवे स्टेशन से खाटू पहुंचा जा सकता है। रोड से खाटूश्याम मंदिर पहुंचने में करीबन 4 से 5 घंटे का समय लगेगा। इसके साथ खाटूश्याम में रुकने के लिए धर्मशाला और होटल की पूरी व्यवस्था है। यहां 1500 से 2000 रुपये में रहने के लिए होटल मिल जाते हैं।
https://youtu.be/Cn60F1F-e_s
यहां रुक सकते हैं-
राज-कृष्णम गेस्ट हाऊस, सीकर
m-9460836178
kmsharma0456gmail.com
Wednesday 8 March 2023
अब भी विवाद का विषय है बड़ा कौन Who is bigger is still a matter of dispute
हिंदू कानून के जनक महर्षि मनु |
अब भी यह बात उठती रहती है कि आखिर बड़ा कौन है। जिनकी उम्र अधिक हो गई है या जिनके बाल पक गए हों। पैसे जिनके पास अधिक हैं या जो ज्यादा सामर्थ्यवान है।
तुलना कर ढूंढते हैं बड़ा
यूं जब भी बड़ा का मतलब ढूंढने की कोशिश की जाती है तो किसी से तुलना करने लगते है। एक -दूसरे से उम्र में बड़ा हो सकता है, जैसे राम भाइयों में बड़े थे। फिर आकार में बड़ा हो सकता है, जैसे चांद से बड़ी धरती। क्षेत्रफल या परिमाण में बड़ा हो सकता है। तुम्हारी जमीन मेरी जमीन से बड़ी है। विद्वानों ने भी इस पर अलग-अलग बातें कही हैं। उन विचारों में सनातन घर्म की मान्यताओं के अनुसार सबसे उत्तम मनु के विचार हैं।
मनुस्मृति में इस पर कई तरह के तर्क दिए गए हैं। उनमें निम्नलिखित दो श्लोक एक ही बात पर विशेष बल देता है।
न हायनैर्न पलितैर्न वित्तेन न बन्धुभिः।
ऋषयश्चक्रिरे धर्मं योऽनूचानः स नो महान् ।
Na haaynairn palitairn vitten nabandhubhih.
Rishayashchkrire dharam yoanuchanh sa no mahan.
अर्थात अधिक अवस्था होने से या बाल पकने से या अधिक धन और अधिक बंधु-बांधव होने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं होता है। हमारे ऋषियों ने इसके लिए एक व्यवस्था बनाई है कि जो व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान और वेद को पढ़ा है वही हमलोगों में बड़ा है। हमें लगता है कि यहाँ बड़ा शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में किया गया है।
न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः ।
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवाः स्थविरं विदुः ।
Na ten vriddho bhagati ye aasha pakistan shirsh.
Yo vai yuvapyadhiyaanastam sevan sthavir vidhi.
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