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Friday 21 August 2020

गणेश चतुर्थी

 


त्मविश्वास बढ़ानेवाले ऊर्जापुंज हैं भगवान श्रीगणेश

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ 

अर्थात वक्र सूंड वाले, बड़े शरीर के मालिक और करोड़ों सूर्य के बराबर तेज प्रतिभाशाली। हे देव, आप हमेशा हमारे सभी कार्यों को बाधा रहित पूरा करें। 

आज गणेश चतुर्थी है। इस अवसर पर हम अपने आराध्य देव भगवान गणेश की उपासना करते हैं। उनकी उपासना से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। हिन्दु दर्शन के मुताबिक कोई काम शुरू करने से पहले यदि विघ्नहर्ता प्रथम पूज्य श्रीगणेश का स्मरण करें तो निश्चित रूप से हमें सफलता मिलती है। हर बाधा को आसानी से पार कर लेते हैं। भगवान श्रीगणेश की आराधना से लगता है कि हमने ऊर्जा के पुंज को प्राप्त कर लिया है। मानसिक तौर पर हम सकारात्मक हो जाते हैं। मनन और चिंतन के प्रतिफल में  आत्मविश्वास बढ़ जाता है। 

दस दिनों का उत्सव

भारतवर्ष समेत पूरे विश्व में हिन्दु दर्शन में आस्था रखनेवाले लोग गणेश चतुर्थी को धूमधाम के साथ मनाते हैं। जहां तक संभव होता है लोग सार्वजनिक या निजी स्तर पर गणपति की प्रतिमा को स्थापित करते हैं। गणेश उत्सव भाद्रपद की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानी दस दिनों तक चलता है। चतुर्दशी को इनका विसर्जन किया जाता है। 

कोरोना वायरस का असर 

गणेश चतुर्थी के मौके पर महाराष्ट्र में विघ्नहर्ता विनायक श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना जोर-शोर से की जाती है। बड़े-बड़े पंडालों में प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोग अपने घरों में पूजा-अर्चना करेंगे। सार्वजनिक उपासना पूरे देश में निषिद्ध है। 

गणेश चतुर्थी की मान्यताएं

भगवान शिव यायावर किस्म के थे। वर्षों तक वह प्रकृति के साथ अलग-अलग स्थानों पर साधना में लीन रहते थे। माता पार्वती से कोई संपर्क नहीं रहता था। माता अकेली रहती थीं। उनका मन एकाकीपन से विह्वल हो जाता था। कभी-कभार स्त्री सुलभ मातृत्व कामना भी उनके हृदय को व्याकुल कर देता था। शिव यक्ष स्वरूप माने जाते हैं। इस कारण पार्वती उनके बच्चे का धारण नहीं कर सकती थी। 

श्रीगणेश जी का अवतरण

श्रीगणेश जी के अवतरण को लेकर शास्त्रों में कई तरह की कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। हर कथा इस ओर संकेत करता है कि भगवान गणेश का प्रादुर्भाव माता पार्वती के हाथों हुआ है। कहा जाता है कि माता ने अपने शरीर पर लगे उबटन (चंदन-हल्दी का लेप) को लेकर मिट्टी से मिलाकर एक पुतले का निर्माण किया।  फिर उसे बच्चे का आकार दिया और उसमें प्राण डाल दिए। बाद में वह भगवान गणेश के रूप में प्रचलित हुए। वर्तमान संदर्भ में भगवान गणेश की उत्पति की कहानी कोरी कल्पना महसूस होती है। पर, आधुनिक विज्ञान में एपिथेलियल कोशिका से यह संभव हो रहा है।

 गणेश से अभिज्ञ शिव

गणेश का प्रादुर्भाव भगवान शिव की अनुपस्थित में हुआ। शंकर भगवान इससे अभिज्ञ थे। कई वर्षों के बाद जब वह अपने गणों के साथ वापस लौटे तब श्रीगणेश 10-12 साल के हो चुके थे। उस समय पार्वती स्नान कर रही थीं। माता ने गणेश जी को आदेश दिया कि - देखना कोई इधर न आ जाए। भगवान शिव जब घर में  प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे तब गणेश जी ने उन्हें दरवाजे पर रोक दिया। इससे भगवान शंकर को गुस्सा आ गया। उन्होंने बिना विचार किए अपनी तलवार से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसी कारण कहते हैं गुस्से में फैसला नहीं लेना चाहिए। उसका अंत पश्चाताप ही होता है। भगवान शिव ने अपने ही बच्चे को खो दिया। 

क्यों कहा जाता है गणपति  

खून से लाल तलवार के साथ भगवान को घर में प्रवेश करते देख माता पार्वती सन्न रह गईं। उन्हें हादसे का भान हो गया। वह आपे से बाहर हो गईं। शिव को खरी-खोटी सुनाने लगीं। भगवान शिव माता पार्वती को बहुत समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, अपने सृजन किया और हमने संहार कर दिया। मगर, माता ने एक न सुना। उन्हें अपना लाड़ला चाहिए। इसके बाद भगवान शंकर ने अपने गणों में से एक का सिर ले लिया और बालक के सिर पर लगा दिया। आधुनिक मेडिकल साइंस इसे प्रत्यारोपण मानता है। गणेश चतुर्थी वही दिन है। चूंकि उन्होंने गणों के मुखिया का सिर काटकर लिया था और इस बालक के धड़ पर लगाया था, तो उन्होंने कहा, अब से तुम एक गणपति हो।

सिर हाथी का क्यों

यह एक रोचक पहलू है। कुछ लोगों का कहना है कि हाथी का सिर होना एक कलाकार की कल्पना है जिन्होंने पहली बार गणेश की तस्वीर को उकेरा। माना जाता है कि गणों के अंग में हड्डियां नहीं होती और हाथी के सूंड में भी हड्डी नहीं होती। इसी कारण कलाकार ने गण से गज की कल्पना की होगी। 

हालांकि गणेशजी को गज का मुख लगाए जाने का रहस्य गणेश पुराण में मिलता है। भगवान विष्णु से दुर्वाशा ऋषि को पारिजात पुष्प मिला था। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप वह देवराज इंद्र को दे दिया और कहा कि जिसके सिर पर यह पुष्प रखा जाएगा वह कुशाग्र होगा। उस वक्त अप्सरा रंभा के प्रेम में कामुक देवराज ने पुष्प का अनादर किया और उसे हाथी के सिर पर रख दिया। ऐसा करते ही देवराज इंद्र का तेज समाप्त हो गया और हाथी मतवाला हो गया। हाथी लोगों को उत्पीड़ित करने लगा। हाथी के मद को कम करने के लिए ईश्वरीय लीला हुई और उसका सिर काट कर बालक गणेश के धड़ से जोड़ दिया गया। पारिजात पुष्प का आशीष भी बालक गणेश को मिला और वह कुशाग्र हो गए।

गणेश जी का अवतार 

भगवान विष्णु और शिव की तरह भगवान गणेश भी घरती पर पाप को खत्म करने के लिए आठ अवतार लिए। इनमें सबसे प्रमुख है- विघ्नहर्ता अवतार। इसमें उन्होंने सिंधु नाम के एक राक्षस का वध किया था। गणेश पुराण में उल्लेखित है कि दैत्य सिंधु कठिन तपस्या कर भगवान विष्णु से वरदान ले लिया था। वरदान स्वरूप श्रीहरि को बैकुंठ छोड़कर सिंधु के नगर में  निवास करना पड़ा। वह बंदी की तरह जीवन गुजारने लगे और सिंधु का देवताओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ गया। इससे देवताओं में हाहाकार मच गया। शिवजी भी कैलाश पर्वत को छोड़कर चले गए। इस बीच भगवान विश्वकर्मा शिवजी से मिलने कैलाश पर आए। वहां विश्वकर्मा की मुलाकात गणेश जी से होती है। सर्वज्ञ भगवान गणेश विश्वकर्मा को देखते ही सब कुछ समझ गए थे। जबकि भगवान गणेश तब 7-8 साल के होंगे। उन्होंने विश्वकर्मा जी से पूछा - मुझसे मिलने आए हैं, तो मेरे लिए कोई उपहार लाए हैं? भगवान विश्वकर्मा ने

उन्हें अस्त्र-शस्त्र उपहार में दिए। इससे गणेशजी अति प्रसन्न हुए और खेल-खेल में वृकासुर नामक राक्षस को खत्म कर दिया। इससे खुश होकर देवताओं ने उनसे दैत्य सिंधु को खत्म करने की विनती की। 

दैत्य सिंधु का संहार

बालक गणेश महादैत्य सिंधु से जंग करने निकल पड़े। इधर सिंधु के नगर में इसकी चर्चा तेज हो गई कि एक बालक चूहे पर सवार होकर सिंधु से लड़ने आ रहा है। लोगों ने भगवान गणेश की खिल्ली उड़ाई। स्वयं दैत्य सिंधु खूब हंसा। इससे बालक गणेश का गुस्सा बढ़ता चला गया। उन्होंने अपने आपको सौ गुणा बड़ा कर लिया और भगवान विश्वकर्मा द्वारा प्राप्त आयुध से उस पर हमला कर दिया। असुर सिंधु को वहीं धराशाई होना पड़ा। तब से गणपति विघ्नहर्ता कहलाने लगे।

पूजा का शुभ मुहूर्त

 दिन के 11 बजकर सात मिनट से दोपहर एक बजकर 42 मिनट तक

शाम में चार बजकर 23 मिनट से सात बजकर 22 मिनट तक

रात में नौ बजकर 12 मिनट से 11 बजकर 23 मिनट तक है।


पूजा सामग्री 

पान, सुपारी, लड्डू, सिंदूर, दूर्वा घास


पूजा विधि

लाल वस्त्र चौकी पर बिछाकर भगवान को स्थान दें। चौकी पर अक्षत जरूर रखें। यह समृद्धि का प्रतीक है। इसके साथ कलश की स्थापना करें। कलश में जलभरकर उसके ऊपर नारियल रखकर चौकी के पास रख दें। प्रसाद के रूप में मोदक और लड्डू रखना चाहिए।


इस मंत्र का करें जाप

ऊं गं गणपतये नम:।

भगवान गणेश की पूजा से लाभ 

भगवान श्रीगणेश विघ्न विनाशक हैं। वह गणों के स्वामी हैं। मान्यता है कि उनकी उपासना से नौ ग्रहों का दोष खत्म हो जाता है। भगवान श्रीगणेश का जहां पूजन होता है, वहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का वास होता है।

कहां करें स्थापना

घर के मुख्य द्वार पर भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती हैं। भगवान श्रीगणेश को हल्दी अर्पित करना शुभ माना जाता है। हल्दी से श्रीगणेश का तिलक करने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। 

ध्यान देने योग्य तथ्य

घर के हर कमरे में श्रीगणेश की मूर्ति न रखें। पूजास्थल के अलावा स्‍टडी रूम में उनकी मूर्ति रखी जा सकती है। घर में श्रीगणेश की शयन या बैठी हुई मूर्ति शुभ होती है। कार्यस्थल पर जमीन को स्पर्श करते हुए खड़ी हुए मुद्रा में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति लगाएं। भगवान श्रीगणेश के चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा होना चाहिए।

                                                                                                             - तरुण कुमार कंचन

 


1 comment:

  1. भगवान गणेश की अर्चना कर निर्विघ्न कार्यों को पूर्ण करें।

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