हिंदू कानून के जनक महर्षि मनु |
अब भी यह बात उठती रहती है कि आखिर बड़ा कौन है। जिनकी उम्र अधिक हो गई है या जिनके बाल पक गए हों। पैसे जिनके पास अधिक हैं या जो ज्यादा सामर्थ्यवान है।
तुलना कर ढूंढते हैं बड़ा
यूं जब भी बड़ा का मतलब ढूंढने की कोशिश की जाती है तो किसी से तुलना करने लगते है। एक -दूसरे से उम्र में बड़ा हो सकता है, जैसे राम भाइयों में बड़े थे। फिर आकार में बड़ा हो सकता है, जैसे चांद से बड़ी धरती। क्षेत्रफल या परिमाण में बड़ा हो सकता है। तुम्हारी जमीन मेरी जमीन से बड़ी है। विद्वानों ने भी इस पर अलग-अलग बातें कही हैं। उन विचारों में सनातन घर्म की मान्यताओं के अनुसार सबसे उत्तम मनु के विचार हैं।
मनुस्मृति में इस पर कई तरह के तर्क दिए गए हैं। उनमें निम्नलिखित दो श्लोक एक ही बात पर विशेष बल देता है।
न हायनैर्न पलितैर्न वित्तेन न बन्धुभिः।
ऋषयश्चक्रिरे धर्मं योऽनूचानः स नो महान् ।
Na haaynairn palitairn vitten nabandhubhih.
Rishayashchkrire dharam yoanuchanh sa no mahan.
अर्थात अधिक अवस्था होने से या बाल पकने से या अधिक धन और अधिक बंधु-बांधव होने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं होता है। हमारे ऋषियों ने इसके लिए एक व्यवस्था बनाई है कि जो व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान और वेद को पढ़ा है वही हमलोगों में बड़ा है। हमें लगता है कि यहाँ बड़ा शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में किया गया है।
न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः ।
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवाः स्थविरं विदुः ।
Na ten vriddho bhagati ye aasha pakistan shirsh.
Yo vai yuvapyadhiyaanastam sevan sthavir vidhi.