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Wednesday 8 March 2023

अब भी विवाद का विषय है बड़ा कौन Who is bigger is still a matter of dispute


Manusmriti
हिंदू कानून के जनक महर्षि मनु




अब भी यह बात उठती रहती है कि आखिर बड़ा कौन है। जिनकी उम्र अधिक हो गई है या जिनके बाल पक गए हों। पैसे जिनके पास अधिक हैं या जो ज्यादा सामर्थ्यवान है।

तुलना कर ढूंढते हैं बड़ा
 

Ramji
   यूं जब भी बड़ा का मतलब ढूंढने की कोशिश की जाती है तो किसी से तुलना करने लगते है। एक -दूसरे से उम्र में बड़ा हो सकता है, जैसे राम भाइयों में बड़े थे। फिर आकार में बड़ा हो सकता है, जैसे चांद से बड़ी धरती। क्षेत्रफल या परिमाण में बड़ा हो सकता है। तुम्हारी जमीन मेरी जमीन से बड़ी है। विद्वानों ने भी इस पर अलग-अलग बातें कही हैं। उन विचारों में सनातन घर्म की मान्यताओं के अनुसार सबसे उत्तम मनु के विचार हैं।


मनुस्मृति के अनुसार
मनुस्मृति में इस पर कई तरह के तर्क दिए गए हैं। उनमें निम्नलिखित दो श्लोक एक ही बात पर विशेष बल देता है।

न हायनैर्न पलितैर्न वित्तेन न बन्धुभिः।

ऋषयश्चक्रिरे धर्मं योऽनूचानः स नो महान् ।


Na haaynairn palitairn vitten nabandhubhih.
Rishayashchkrire dharam yoanuchanh sa no mahan.


अर्थात अधिक अवस्था होने से या बाल पकने से या अधिक धन और अधिक बंधु-बांधव होने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं होता है। हमारे ऋषियों ने इसके लिए एक व्यवस्था बनाई है कि जो व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान और वेद को पढ़ा है वही हमलोगों में बड़ा है। हमें लगता है कि यहाँ बड़ा शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में किया गया है।

वेद और वेदांग पड़नेवाला बड़ा
Vadadhyan


न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः ।
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवाः स्थविरं विदुः ।


Na ten vriddho bhagati ye aasha pakistan shirsh.
Yo vai yuvapyadhiyaanastam sevan sthavir vidhi.


अर्थात शरीर के बाल श्वेत हो जाने से कोई वृद्ध नहीं होता है। देवताओं का कहना है कि युवा होते हुए भी वेद और वेदांग को जिसने पढ़ा है वही वृद्ध है। यहां विद्याध्ययन और अध्यापन को प्रमुखता दी गई है।

Saturday 4 March 2023

ब्राह्मण भोज में संख्या का रखें ध्यान Keep in mind the number in Brahmin feast (bhoj)


  brahman bhojan3

        सनातन संस्कृति में ब्राह्मण भोजन के बिना देवकार्य और पितृकर्म पूरा नहीं हो सकता है। बल्कि कह सकते हैं कि ऐसा करना अनिवार्य है। अब सवाल उठता है कि किस तरह के ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए? कितने ब्राह्मण भोज में शामिल हों?

परम आदरणीय ब्राह्मणों को ही बुलाएं

इतना तो सच है कि ब्राह्मण भोजन में उन्हें ही आमंत्रित करें जो आपके परम आदरणीय हों। आप उनका सम्मान करें और वह आपके सम्मान का ख्याल रख सकें। इससे देव भी प्रसन्न होते हैं और पितरों को तृप्ति मिलती है। इस कारण मनु ने स्पष्ट कहा है कि देवकार्य हो या पितृकर्म उसमें ब्राह्मणों की संख्या कम रखें।


तीन या दो ब्राह्मण ही बुलाएं

brahman bhajan-2

द्वौ दैवे पितृकार्ये त्रीनेकैकं उभयत्र वा। 

भोजयेत्सुसमृद्धोऽपि न प्रसज्जेत विस्तरे।।

अर्थात देवकार्य में दो, पितृश्राद्ध में तीन या दोनों में एक-एक ब्राह्मण को भोजन पर बुलाएं। अधिक ब्राह्मण को भोजन कराने में सक्षम होने के बाद भी हमें इससे बचना चाहिए।


स्वामी दर्शनानंद जी का भी इस संबंध में टिप्पणी है कि देवकर्म में एक और पितृकर्म में दो ही ब्राह्मण को भोजन करावे। लोगों को इन अवसरों पर अत्यन्त खर्चीली व्यवस्था नहीं करनी चाहिए।


ज्यादा ब्राह्मण बुलाने से कार्य में बाधा संभव

                  सत्क्रियां देशकालौ च शौचं ब्राह्मणसंपदः।

               पञ्चैतान्विस्तरो हन्ति तस्मान्नेहेत विस्तरम् ।।

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अर्थात भोज में ब्राह्मणों की संख्या बढ़ाने से श्राद्ध कार्य के जो पांच आवश्यक अंग हैं - संस्कार, देश, काल, पवित्रता और ब्राह्मणत्व को साधने में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिए सामर्थ्यवान होने के बाद भी लोगों को ब्राह्मण भोज में संख्या नहीं बढ़ानी चाहिए।


पितरों का कर्ज चुकाने का प्रयास

 पितृपक्ष में श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध करके हम पितरों के कर्ज को चुकाने का प्रयास करते हैं. मान्यता यह भी है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है। हालांकि इसके खास नियम हैं। विदाई के समय दान-दक्षिणा देने का भी विधान है।


ब्राह्मण भोजन में क्या हो और क्या न हो

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ब्राह्मण के लिए भोजन का मतलब होता है पवित्रता और शुद्धता।  हम कह सकते हैं कि भोजन ऐसे बनना चाहिए जिसमें भूलकर भी लहसुन, प्याज का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मान्यता के अनुसार दक्षिण को पितरों की दिशा माना गया है।.कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितर दक्षिण  दिशा से पृथ्वी पर आते है। ऐसे में ब्राह्मण को भोजन हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कराना चाहिए।


- तरुण कुमार कंचन





Friday 3 March 2023

मानव जीवन में सर्वश्रेष्ठ होता है गृहस्थ आश्रम Grihastha Ashram is the best in human life

grihasth


सनातन संस्कृति में चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की व्यवस्था है, जो मनुष्य की अवस्था के अनुसार विभाजित है।

दूसरे आश्रमों का पोषक
  गृहस्थ आश्रय को समाज की रीढ़ कहा जाता है। गृहस्थ ही इस सृष्टि को चलाता है। दूसरे आश्रम में रहनेवाले लोगों का पोषण भी करता है।  हर आश्रम के लिए 25 साल की सीमा तय है। इस तरह एक व्यक्ति की आयु 100 साल मानी गई है। इन चारों आश्रमों में गृहस्थ को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

गृहस्थ आश्रम दुर्बल इंद्रियों से संभव नहीं
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मनुस्मृति में स्पष्ट लिखा गया है कि स्वर्ग की इच्छावाले को और इस लोक में सुख चाहनेवाले को यत्न कर गृहस्थ आश्रम का पालन करना चाहिए, जो दुर्बल इंद्रियों से संभव नहीं है।

यथा वायुं समाश्रित्य वर्तन्ते सर्वजन्तवः ।
तथा गृहस्थं आश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमाः।।

अर्थात जैसे वायु से सभी जीव-जंतु का वर्तमान सिद्ध होता है यानी जीवित रहते हैं वैसे ही गृहस्थ के आश्रय से सब आश्रम (ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी ) का निर्वाह होता है।
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यस्मात्रयो~प्याश्रमिणो ज्ञानेनान्नेन चान्वहम।
गृहस्थेनैव धार्यन्ते तस्माज्ज्येषेठाश्रमो गृही ।।

अर्थात तीनों आश्रमों के लोग गृहस्थों के द्वारा नित्य वेदार्थज्ञान की चर्चा और अन्नदान से चलते हैं। इस कारण सभी आश्रमों में गृहस्थाश्रम बड़ा है।


: - तरुण कुमार कंचन

Thursday 2 March 2023

ब्राह्मणों की जनसंख्या कम क्यों Why the population of Brahmins is less

blogger/Brahmin

  ब्रह्म को जाननेवाला ब्राह्मण


                 बिहार में जाति गणना हो रही है। यह सर्वविदित है कि ब्राह्मणों की संख्या कम है।लेकिन, क्या आपने कभी विचार किया कि ब्राह्मणों की संख्या कम क्यों है? शायद नहीं। आज हम तलाश करते हैं अतीत और इतिहाम के पन्नों में इसका जवाब। समय-समय पर ब्राह्मण को परिभाषित करने की कोशिश की गई है।

ब्राह्मण सनातन धर्म का प्रमुख हिस्सा

 यह सच है कि ब्राह्मण सनातन धर्म का प्रमुख हिस्सा रहा है। सनातन धर्म में मूल रूप से चार वर्णों -ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की बात आती है। यह हमारी वैदिक व्यवस्था है यानी अनादि काल से चला आ रहा है। ऐसी स्थिति में देखें तो सभी की जनसंख्या बराबर होनी चाहिए। मगर ब्राह्मण कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत से कम ही है।

कर्म से ही वर्ण तय

सनातन धर्म में कर्म से ही वर्ण तय होता था। हमारे पुराणों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, शुद्र होने बाद भी शील और ज्ञान की बदौलत ब्राह्मण बन गए। उन्हें आचार्य पद पर भी सुशोभित किया गया। यास्क मुनि ने कहा था:-

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विज ।

एक पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

   यानी जन्म से हर व्यक्ति शूद्र होता है। संस्कार से द्विज बनते हैं। वेदों के अध्ययन-अध्यापन से विप्र हो सकते हैं , लेकिन ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म यानी सबकुछ (ईश्वर से अंतिम सत्य तक) जान ले। हम कह सकते हैं कि ईश्वर को जानने वाला ही ब्राह्मण है।


भाष्यकार पतंजलि ने भी कहा था

विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मणकारकम्।

                                       विद्यातपोभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥

अर्थात- ”विद्या, तप और ब्राह्मण कुल में जन्म ब्राह्मण होने का प्रमाण है। पर जो विद्या तथा तप से शून्य है वह ब्राह्मण पूज्य नहीं हो सकता।

सभी जीवों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण

महर्षि मनु ने पवित्रता को ही ब्राह्मण का प्रमाण माना है। उन्होंने कहा : 

विधाता शासिता वक्ता मो ब्राह्मण उच्यते।

तस्मै नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गिरमीरयेत्॥

अर्थात शास्त्रों को रचनेवाला और सत्कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, शिष्यादि की ताडनकर्ता, वेद का वक्ता और सभी जीवों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण कहलाता है। इसलिए उनके लिए कोई अनुचित शब्द का प्रयोग नहीं हो ।

न ब्राह्मणं परीक्षेत दैवे कर्मणि धर्मवित।

पित्र्ये कर्मणि तु प्राप्ते परीक्षेत प्रयत्नतः।।

अर्थात धर्म को जाननेवाले पुरुष देवकर्म में ब्राह्मण की परीक्षा न करें। हालांकि पितृ कर्म में ब्राह्मण के आचार, विचार , ज्ञान और आचरण की परीक्षा जरूर करें।

ये स्तेनपतितक्लीबा ये च नास्तिकवृत्तय:।

तान् हव्यकव्योर्विप्राननर्हान् मनुरब्रवीत् ।।

google brahmin

     अर्थात जो चोर हों, पतित हों, नपुंसक हो, नास्तिक हों - वे ब्राह्मण हव्य-काव्य       के योग्य नहीं होते हैं।

               हम कह सकते हैं कि ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी पवित्रता,             कठिन तपस्या, वेद अध्ययन से च्यूत होने से उनका वर्ण अधम होता चला               गया और ब्राह्मणों की संख्या घटती गई।

- तरुण कुमार कंचन



 









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