तरुण कुमार कंचन
भारत की पहचान इसकी सभ्यता और संस्कृति है। यहां कण-कण में राम बसते हैं। श्रद्धा और आस्था के इस देश में प्रेम की प्रचुरता भी है। जहां प्रेम का वास होता है, वहां समर्पण सबसे आगे चलता है। हरतालिका तीज इसी समर्पण भाव का प्रतीक है।
क्यों कहते है तीज
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने के कारण इसे तीज कहते हैं। इस बार यह व्रत शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य सिंह राशि और चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा।
शुभ मुहूर्त - पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 55 मिनट से लेकर रात नौ बजकर 8 मिनट तक होगा।
मनाने की परंपरा
बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ राजस्थान के भी कुछ इलाकों में भी सुहागिन महिलाएं इस व्रत को रखती हैं। दक्षिण भारत में भी इस पर्व को मनाया जाता है। वहां गौरी हव्वा के नाम से लोग जानते हैं।
अखंड सौभाग्य का व्रत
सावन और भादो शिव महिमा से परिपूर्ण है। भगवान शिव परिवार के साथ चलनेवाले देवताओं में अग्रणी हैं। मानव जाति पर उनकी असीम कृपा रहती है। इस कारण अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं इस व्रत को श्रद्धा से करती हैं। वह निर्जला रहती हैं। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित यह व्रत सुहागिन महिलाएं पति के दीर्घायु होने की कामना के साथ रखती हैं। परिवार पर उनका आशीष प्राप्त होता है। कहते हैं कि कुंवारी कन्या यदि इस व्रत को रखती हैं तो मनचाहा पति की इच्छा पूर्ण होती है।
हरतालिका तीज की कथा
घर्मग्रंथों में वर्णित है कि माता पार्वती ने सबसे पहले इस व्रत को रखा था। इसके बाद भगवान शिव ने उनसे विवाह किया। कथा कुछ प्रकार है- माता पार्वती के पिता हिमालय उनके विवाह के बारे में सोच रहे थे। नारद जी ने हरि यानी विष्णु से पार्वती का विवाह कराने की सलाह हिमालय को दी। हिमालय ने भी अपनी सहमति दे दी। उधर माता पार्वती शिव को अपना सर्वस्व मान चुकी थी और उन्हें प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या भी की।
मान्यता है कि माता पार्वती ने सुखे पत्ते खाकर शिव की साधना में लीन हो गई। सावन में निराहार रहीं। इस बीच भगवान विष्णु से विवाह की पूरी तैयारी कर ली गई। पार्वती विह्वल होने लगीं। उन्होंने पूरी कहानी अपनी सहेलियों को बता दी। हरि से विवाह नहीं रुकने की स्थिति में सहेलियों ने हरण कर उन्हें जंगल में छुपा दिया। पूरा सावन बीत गया मगर हिमालय को अपनी पुत्री का पता नहीं चला। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को पार्वती जी ने एक गुफा में रेत का शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा शुरू कर दी। तब शिव ने समाधि तोड़ी। उन्हें अपनी पत्नी बनने का वरदान दिया। सुबह होने पर पार्वती ने अपनी पूजा पूर्ण की और सहेलियों के साथ पारण किया।
दूसरी कथा यह है कि महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुन्धती ने इस व्रत को की और अपने पति सहित ऋषियों में ऊच्च स्थान प्राप्त किया।
पूजन सामग्री
माता पार्वती के लिए श्रृंगार सामग्री चूड़ी, कंघी, कुमकुम, सिंदूर, बिंदी, काजल, घी-तेल, बिछिया चढ़ाई जाती है। भगवान शिव के लिए धूप, दीप, फूल, बेलपत्र, आम के पत्ते, पान और मिठाई चढ़ाई जाती है। शिवजी को वस्त्र जरूर चढ़ाना चाहिए।
पूजन विधि
रेत या मिट्टी से शिव-पार्वती की प्रतीमा बनाई जाती है। शाम में प्रदोष काल में चौकी पर लाल कपड़ा या केले के पत्ते को बिछाकर उसपर प्रतिमाएं रखी जाती हैं। फूल और मालाओं उसे सजाया जाता है। इसके बाद चौकी के सामने कलश रख कर शिव-पार्वती की प्रतिमाओं पर जल छिड़ककर स्नान कराया जाता है। धूप, दीप, कर्पूर ,मेवा, पंचामृत और मिठाई चढ़ाई जाती है। माता पार्वती के लिए श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है। इसके बाद शिव और पार्वती से जुड़ी कथाएं पढ़ी जाती हैं। सुहागिन महिलाएं रात भर हर पहर पूजा करती हैं और भजन कीर्तन करती है। उस रात व्रती सोती नहीं है। सुबह उठकर शिव-पार्वती की आरती के बाद पारण करती हैं।
शिव पूजन मंत्र
ऊं हराय नम: । ऊं महेश्वराय नम: । ऊं शम्भवे नम: । ऊं शूलपाणये नम: । ऊं पिनाकवृषे नम: । ऊं शिवाय नम: । ऊं पशुपतये नम: । ऊं महादेवाय नम:
माता पार्वती पूजन मंत्र
ऊं उमायै नम: । ऊं पार्वत्यै नम: । ऊं जगद्धात्र्यै नम: । ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम: । ऊं शांतिरूपिण्यै नम: । ऊं शिवायै नम: ।
भगवान शिव और माता पार्वती की कृपादृष्टि बरकरार रहे। जय जय शिव।
ReplyDelete