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Wednesday 28 February 2024

अपशगुन माने जाते थे जगतगुरु रामभद्राचार्य Jagatguru Rambhadracharya was considered a bad omen


जो बालक बचपन में अपशगुन बन गया था। शादी विवाह में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता था। अपने लोग भी साथ नहीं ले जाते थे। आज पूरे देश के लिए आंखों का तारा बन गए हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं जगतगुरु रामभद्राचार्य जी की। ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए उनके नाम की घोषणा के बाद एक बार फिर पूरे देश का ध्यान उनकी ओर गया।
इधर गुरुजी कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। अब  वे ठीक हैं। दिल्ली एम्स में जगतगुरू रामभद्राचार्य जी के हार्ट के वॉल्व को बदल दिया गया है। एम्स के डॉक्टरों ने सर्जरी की मदद से उनके वॉल्व को रिप्लेस कर दिया है जिसके बाद अब वह पूरी तरह से स्वस्थ बताए जा रहे हैं। 
 ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा होते ही सभी का ध्यान देश के एक ऐसे संत की ओर मुड़ गया जिसकी प्रतिभा के कायल देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हैं। जगतगुरु रामभद्राचार्य को वर्ष 2023 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मान देने की घोषणा हुई है।
  ज्ञानपीठ के लिए नामों का एलान करते हुए चयन समिति ने कहा कि यह पुरस्कार 2023 के लिए दो भाषाओं के प्रतिष्ठित लेखकों को देने का निर्णय लिया गया है। ये हैं ,संस्कृत साहित्यकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार गुलज़ार। चयन समिति की घोषणा के बाद जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए उसे स्वीकार किया।
   58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुने गए रामभद्राचार्य ने अब तक 250 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। भार्गवराघवीयम, अरुंधति महाकाव्य, ब्रह्मसूत्र उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उन्होंने संस्कृत व हिंदी में अपनी रचनाएं लिखीं। इन्ही रचनाओं के लिए उन्हें साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ मिला है। इसमें पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रुपये, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाती है। जब वर्ष 1965 में ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना हुई थी, तो उस समय पुरस्कार राशि मात्र एक लाख रुपये थी। संस्कृत भाषा में लेखन के लिए अब तक रामभद्राचार्य जी समेत दो लेखकों यह सम्मान मिला है।
आइए, अब हम उनके जीवन संघर्ष पर बात करते हैं।यह बहुत ही प्रेरक है।
  जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का जन्म मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिला अंतर्गत शांति खुर्द गांव के एक  ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम गिरिधर रखा गया था। इस नाम के पीछे एक बड़ी रोचक कहानी है। बताते हैं कि उनकी एक मौसी थी, जो मीराबाई की बड़ी भक्त थी।  मौसी उन्हीं  की रचना से प्रभावित होकर रामभद्राचार्य जी का नाम गिरिधर रखा था। श्रीमती शची देवी मिश्र उनकी माता जी थीं जबकि उनके पिता का नाम श्री राज देव मिश्र था। रामभद्राचार्य जी पर सबसे ज्यादा प्रभाव दादा जी पंडित सूर्यबली मिश्र जी का था।
   जब गिरिधर 11 - 12 वर्ष के थे तब उनके घर परिवार के लोग  एक शादी समारोह में जा रहे थे लेकिन उस शादी समारोह में गिरधर को जाने से मना कर दिया । इसका कारण तो यह मानते थे कि इनको ले जाना एक अपशगुन होगा । उस समय कहीं भी उनकी उपस्थिति को अपशगुन मानते थे क्योंकि बचपन से अंधे हो गए थे |
   जगदगुरू रामभद्राचार्य जी जब 2 महीने के ही हुए थे उसी उम्र में आंखों की रोशनी चली गई, उनकी आंखों में ट्रेकोमा नाम की बीमारी हुई थी 24 मार्च 1950 को पता चली और गांव में इलाज की अच्छी व्यवस्था ना होने के कारण उनकी आंखों का इलाज नहीं हो पाया |
उनके घर वाले श्री गिरिधर जी को लखनऊ के किंग जॉर्ज अस्पताल में भी ले गए थे जहां उनका 21 दिनों तक आंखों का इलाज चला, फिर भी उनकी आंखों की दृष्टि वापस नहीं लौटी | उस समय श्री गिरिधर जी 2 महीने के थे तभी से जगतगुरु रामभद्राचार्य अंधे हैं |अंधे होने के कारण वे पढ़ लिख भी नहीं सकते थे और उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए ब्रेल लिपि का भी प्रयोग नहीं किया उन्होंने अपने जीवन में जो भी सीखा है सुनकर सीखा है और शास्त्रियों को निर्देश देकर रचना किया करते थे |
  गिरधर ने अपनी शिक्षा का प्रारंभ उनके दादाजी से की थी क्योंकि उनके पिताजी तो मुंबई में काम करते थे उसके बाद उनके दादाजी ही उन्हें हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत के कई प्रसंग और विश्राम सागर जैसी कई भक्ति रचनाएं सुनाए करते थे और उसके बाद श्री गिरिधर ने मात्र 3 साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता अवधी भाषा में लिखी | 
    श्री गिरिधर  विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। जब 5 साल के थे तभी उन्होंने अपने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा से सुनकर मात्र 15 दिनों में ही भगवत गीता को याद कर लिया। जब गिरिधर मात्र 7 वर्ष के थे तभी उन्होंने अपनी दादा जी की मदद से 60 दिनों में ही तुलसीदास के पूरे रामचरितमानस को याद कर लिया था।
श्री गिरिधर ने 17 साल की उम्र तक किसी भी स्कूल में जाकर शिक्षा प्राप्त नहीं की, उन्होंने बचपन में ही रचनाएं सुनकर काफी कुछ सीख लिया था गिरधर के घर परिवार के चाहते थे कि गिरिधर एक कथावाचक बने उनके पिताजी ने गिरधर को पढ़ाने के लिए कई ऐसे स्कूल में भेजने को चाहा जहां अंधे बच्चों को पढ़ाया जाता है लेकिन उनकी मां ने नहीं जाने दिया उनकी मां का मानना था कि अंधे बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता |
उसके बाद गिरधर ने 7 जुलाई 1967 को हिंदी अंग्रेजी संस्कृत व्याकरण जैसे कई सब्जेक्ट को पढ़ने के लिए एक गौरीशंकर संस्कृत कॉलेज में प्रवेश ले लिया।
उसके कुछ दिनों के बाद उन्होंने भुजंगप्रयत छंद में संस्कृत का पहला श्लोक रचा | बाद में उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय में प्रवेश किया, उसके बाद 1974 में बैचलर ऑफ आर्ट्स परीक्षा में टॉप किया और फिर उसी संस्थान में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया |
1976 को विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए श्री गिरिधर को आचार्य के रूप में घोषित किया गया। इधर गिरिधर ने अपना जीवन समाज सेवा और विकलांग लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। उसके बाद 9 मई 1997 से गिरधर को सभी लोग रामभद्राचार्य के नाम से जानने लगे थे |
    श्री गिरिधर ने 19 मई 1983 को वैरागी दीक्षा ली इस समय गिरिधर, रामभद्रदास के नाम से जाने लगे थे उसके बाद 1987 में रामभद्र दास ने चित्रकूट में तुलसी पीठ नाम से सामाजिक सेवा और धार्मिक संस्थान की स्थापना की |
24 जून 1988 मे रामभद्र दास को काशी विद्वत परिषद द्वारा तुलसी पीठ में जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप चुना गया उसके बाद उनका अयोध्या में अभिषेक किया गया जिसके बाद उन्हें स्वामी रामभद्राचार्य के नाम से जानने लगे |
स्वामी रामभद्राचार्य जी ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी प्रतिभा  से दंग कर दिया था। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर होने की 437 प्रमाण कोर्ट को दिए हैं । रामभद्राचार्य जी को 22 भाषाओं के जानकार बताए जाते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार विद्वान साथी संजय तिवारी ने अपने आलेख में लिखा कि स्वामी रामभद्राचार्य जी को यह सम्मान यों ही नहीं मिला है। हाल ही में उनकी विद्वता का साक्षात्कार दुनिया के सामने एक विशाल संग्रह के रूप में आया है। उनकी रचनाओं में कविताएं, नाटक, शोध-निबंध, टीकाएं, प्रवचन और खुद के ग्रंथों पर स्वयं सृजित संगीतबद्ध प्रस्तुतियां शामिल हैं।
  चित्रकूट में तुलसीपीठ के संस्थापक और प्रमुख रामभद्राचार्य शिक्षक और संस्कृत भाषा के विद्वान हैं। स्वामी रामभद्राचार्य को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक, 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया | इसके अलावा स्वामी रामभद्राचार्य जी को  इंदिरा गांधी और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सम्मानित किया था। 

Tuesday 27 February 2024

Geetmala fame Ameen Sayani

Geetmala Fame Ameen Sayani Passes Away Due To Heart Attack At Age Of 91

बिनाका गीतमाला' के राजा अमीन सयानी नहीं रहे
91 की उम्र में उनका निधन हार्ट अटैक से हो गया
21 दिसंबर, 1932 को मुंबई में अमीन सयानी का जन्म 
20 फरवरी 2024 को मुंबई के एक अस्पताल में निधन

बहनों और भाइयों, आपका दोस्त अमीन सयानी.....यह सुनहरी आवाज अब चुप हो चुकी है। जादुई आवाज का सरताज, रेडियो का राजा भले ही इस दुनिया को अलविदा कह गए, मगर उनकी आवाज इस कायनात में गूंजती रहेगी। "  उन्होंने अपने शानदार अंदाज और दमदार आवाज से लोगों को रेडियो का दीवाना बना दिया था। वे अपनी मनमोहक आवाज और आकर्षक शैली के लिए जाने जाते थे।
अमीन सयानी की आवाज जब रेडियो पर गूंजती थी तो श्रोता रेडियो से चिपकते चले जाते थे। ऐसा महसूस होता था वह सामने बैठकर हमसे बातें कर रहे हैं।
जब देश में रेडियो ही मनोरंजन और प्रसारण का मुख्य स्रोत हुआ करता था, तब उनकी आवाज नंबर एक पर था और 50 साल तक रेडियो के श्रोताओं के दिलों पर राज किया। 91 की उम्र में 20 फरवरी 2024 को उस  राजा का निधन हो गया है। उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। 
21 दिसंबर, 1932 को मुंबई में अमीन सयानी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंग्लिश ब्रॉडकास्टर के रूप में की थी। हालांकि आजादी के बाद हिंदी की तरफ रुख कर लिया और पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन्होंने 54,000 रेडियो कार्यक्रम किये और 19,000 जिंगल्स भी गाए हैं। 'बिनाका गीतमाला' को जीनेवाला अमीन सयानी इस कार्यक्रम का पर्याय बन चुके थे। इस वजह से उनका नाम लिम्का बुक्स ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है।
अमीन सयानी ने 1952 में प्रसारित शो 'गीतमाला' से लोकप्रियता हासिल की थी। हम यह भी कह सकते हैं कि सयानी ने अपनी आवाज से गीतमाला को लोगों का धड़कन बना दिया था। उस जमाने में नंबर वन रहा ये शो लंबे समय तक प्रसारित हुआ। 1952 से शुरू हुआ ये 1994 तक चला था। इसके बाद इसे दोबारा 2000 से 2001 और फिर 2001-2003 तक कुछ बदलावों के साथ दोबारा टेलीकास्ट किया गया। वह रेडियो/विविध भारती के सबसे जाने-माने अनाउंसर व टॉक शो होस्ट में से एक थे। चार्ट-टॉपिंग हिट्स वाला गीतमला कार्यक्रम दक्षिण एशिया का एक बेहतरीन कार्यक्रम साबित हुआ।

उनके बेटे राजिल सयानी ने बताया कि 20 फरवरी की रात अस्पताल में अमीन सयानी ने अंतिम सांस ली। हार्ट फेल होने के कारण उनका निधन हुआ है।

'गीतमाला' से अमीन सयानी पहले होस्ट बन गए थे, जिन्होंने म्यूजिक के बारे में अपनी समझ को शो के जरिए जाहिर किया था। उन्होंने अपनी जादूई आवाज से श्रोताओं पर सालों राज किया। उनके सामने तो बड़े-बड़े कलाकार भी घुटने टेकते थे। एक बार बड़ा दिलचस्प माजरा हुआ था। उनकी मौत की झूठी अफवाह उड़ी थी। इस पर उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं की, जो किसी के  दिल पर चोट लगे। इसका उन्होंने मुस्कुरा कर जबाव दिया था कि शुक्र है कि मैं जिंदा हूं। इस तरह अमीन सयानी ने भारत में रेडियो को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई। वे अपनी बुद्धि, ज्ञान और आकर्षक प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते थे।

अमीन सयानी का बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के साथ एक दिलचस्प किस्सा है। कहा जाता है कि शुरुआती दिनों में जब अमिताभ बच्चन संघर्ष कर रहे थे तब वे रेडियो में बतौर रेडियो अनाउंसर के लिए टेस्ट देने गए थे। वहां उनका पाला अमीन सयानी से पड़  गया था।अमीन सयानी ने ही उनका टेस्ट लिया। आज अपनी बुलंद आवाज के लिए प्रसिद्ध अमिताभ बच्चन को उस वक्त अमीन सयानी ने रिजेक्ट कर दिया था। इस वाकये का जिक्र वह खुद कई बार कर चुके थे और उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें इस बात का मलाल हमेशा रहेगा। 
अमीन सयानी ने भूत बंगला, तीन देवियां, कत्ल जैसी फिल्मों में अनाउंसर के तौर पर भी काम किया था। रेडियो पर सितारों पर आधारित उनका शो ‘एस कुमार्स का फ़िल्मी मुकदमा’ भी काफ़ी लोकप्रिय रहा था।
बताया जाता है कि अमीन सयानी हाई ब्लड प्रेशर समेत कई अन्य बीमारियों से ग्रसित थे। पिछले एक दशक से उन्हें पीठ दर्द‌ की भी शिकायत थी । इस कारण उन्हें चलने‌ के लिए वॉकर‌ का इस्तेमाल करना पड़ता था। अंत में उनके बेटे राजिल सयानी ने इस खबर की पुष्टि की और कहा कि अमीन सयानी ने 20 फरवरी की रात मुंबई के अस्पताल में अंतिम सांस ली है। 91 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में इच्छा जाहिर की थी कि इस दुनिया से जाने से पहले वह अपनी एक आत्मकथा लिखना चाहते हैं। जीवन की तमाम बातें उसमें साझा करना चाहते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ी उस बारे में जान सके। 

अपशगुन माने जाते थे जगतगुरु रामभद्राचार्य Jagatguru Rambhadracharya was considered a bad omen

जो बालक बचपन में अपशगुन बन गया था। शादी विवाह में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता था। अपने लोग भी साथ नहीं ले जाते थे। आज पूरे दे...