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Sunday 10 January 2021

बर्ड फ्लू : एक और महामारी की ओर बढ़ रहा भारत (Bird Flu: India heading towards another pandemic)

                                                                                                                                प्रतीकात्मक तस्वीर

 बर्ड फ्लू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। भारत में अब तक सात राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि कर दी गई है। उत्तरप्रदेश और हरियाणा में बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद दिल्ली में  अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। फिरभी भारत एक और महामारी की ओर बढ़ रहा है।

 

देश में बर्ड फ्लू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। अब तक सात राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि कर दी गई है। उत्तरप्रदेश और हरियाणा में बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद दिल्ली में  अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है।  इसके बावजूद कई जगहों से पक्षी की मौत की सूचना आ रही है। बर्ड फ्लू के फैलते संक्रमण के कारण भारत के सामने एक बार फिर सेहत पर संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं। कोरोना और कोरोना के नए स्टेन से विश्व के साथ भारत पहले से ही सेहत के संकट से जूझ रहा है।   केंद्र सरकार ने उत्तरप्रदेश, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और हरियाणा में बर्ड फ्लू से पक्षियों की मौत की पुष्टि कर दी। हालांकि इनमें एच5एन1 की अभी पुष्टि नहीं हुई है। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने राज्यों से पक्षियों की मौत पर सतर्कता बरतने और उपाय लागू करने संबंधी परामर्श जारी कर दिए हैं। सभी राज्यों को अविंलब इसकी सूचना केद्र को भेजने के लिए कहा गया है।

उत्तर से दक्षिण तक फैल चुका है वायरस

भारत के उत्तर से दक्षिण तक बर्ड फ्लू ने अपना पैर पसार लिया है। कौओं, बत्तखों, टिटहरियों और प्रवासी पक्षियों से होते हुए बर्ड फ्लू अब मुर्गियों में फैलनी शुरू हो गई है। केंद्र सरकार ने हरियाणा के दो पोल्ट्री फार्म में इस संक्रमण के फैलने की पुष्टि कर दी है। महाराष्ट्र के परभाणी में 900 मुर्गियों की मौत की सूचना है। हालांकि जांच रिपोर्ट का इंतजार है। उत्तरप्रदेश के कानपुर चिड़ियाघर में बर्ड फ्लू की पुष्टि हो गई है। बुधवार को चार पक्षियों की मौत के बाद भेजे गए सैंपल में बर्ड फ्लू संक्रमण पाया गया है। भोपाल की लैब से रिपोर्ट मिलने के बाद हड़कंप मच गया है। अगले आदेश तक चिड़ियाघर सील कर दिया गया है। बिहार में भी अलग-अलग 125 पक्षियों की मौत की सूचना है, मगर अभी जांच रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। पशुपालन व डेयरी विभाग के अधिकारियों ने बताया कि राजस्थान के बारां, कोटा, झालवाड, मध्यप्रदेश के मंदासैर, इंदौर व मालवा में कौओं की मौत हुई है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में प्रवासी पक्षियों, केरल में कोट्टायम व अल्लपुझा में पोल्ट्री व बतख की मौतें हुई हैं। भारत सरकार के आईसीएआर-एनआईएचएसएडी भोपाल में संक्रमित नूमनों की जांच के बाद बर्ड फ्लू की पुष्टि हो गई है। अधिकारियों का कहना है कि बर्ड फ्लू संक्रमण की स्थिति को देखते हुए पांच जनवरी को हिमाचल प्रदेश को परामर्श जारी किया गया है। इसमें राज्य को पोल्ट्री की बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने की सलाह दी गई है।
  

घातक होता है इसका वायरस

यह सच है कि बर्ड फ्लू कोई नई बात नहीं है। फिरभी मानवजाति के लिए यह बहुत ही खतरनाक है। डॉक्टरों का कहना है कि इसका वायरस काफी घातक होता है। इससे संक्रमित होने के बाद इंसान की मृत्यु-दर लगभग 60 फीसदी आंकी गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनियाभर के देशों को इसे लेकर आगाह करता रहता है कि  सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बर्ड फ्लू बेहद गंभीर है। पोल्ट्री फॉर्म को लेकर लोग ज्यादा चिंतित हैं। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक पोल्ट्री फॉर्म की निगरानी बढ़ाने के निर्देश जारी  किए हैं। सर्दियों में पोल्ट्री उत्पादों की खपत बढ़ जाती है। ऐसे में कोई भी लापरवाही भारी जानलेवा साबित हो सकती है। वैसे भी, कोविड-19 को लेकर जिस तरह दुनिया फंसी है, ऐसे में  सतर्कता ही कारगर होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि बचाव पर अमल करें। पहले से एहतियात बरतें, ताकि किसी भी प्रकार के संक्रमण के खतरे को दूर किया जा सके। डॉक्टर ने कहा कि अभी यह कुछ राज्यों में है, इसे रोकना जरूरी है। नहीं तो यह महामारी की तरह फैलता जाएगा।

कोरोना की तरह बर्ड फ्लू भी पहली बार चीन में  दिखा
 पहली बार बर्ड फ्लू का वायरस 1996 में चीन में मिला था। 1997 की बात है पूरी दुनिया में तहलका मच गया था जब हांगकांग में मनुष्य में पहला केस रिपोर्ट किया गया। पहली बार बर्ड फ्लू बीमारी सामने आया था। बताया गया कि एन्फ्लूएंजा नामक वायरस से यह बीमारी फैलती है। तब वैज्ञानिकों ने बताया था कि इसमें 16 स्ट्रेन होते हैं। इनमें केवल एच5एन1 स्ट्रेन है जो इंसानों को प्रभावित करता है। अन्य 15 तरह के स्ट्रेन सिर्फ पक्षियों को  प्रभावित करता है। 2006 की बात है जब यह वायरस चीन-हांगकांग से टहलते हुए भारत पहुंच गया। डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी आमतौर पर पेशाब और मल के जरिए  फैलती है।

क्या है एनफ्लूएंजा
मेडिकल साइंस में इसे  एवियन एन्फ्लूएंजा कहा जाता है। यह संक्रामक है। यह एक पक्षी से दूसरे पक्षियों या जानवरों तक फैल सकता है। इसकी वजह से हर साल दुनियाभर में कई पक्षियों की मौत हो जाती है। यह जानलेवा भी हो सकता है। जानकर आश्चर्य होगा कि इसके वायरस भी कोरोना स्ट्रेन की तरह चेंज होते रहते हैं।  अभी तक जो बताया जा रहा है कि इसके 16 स्ट्रेन हैं, इनमें से एच7एन3, एच7एन7, एच7एन9, एच9एन2 और एच5एन1 प्रमुख हैं।

कैसे फैलती है यह बीमारी
एवियन एन्फ्लूएंजा वायरस खासतौर पर ठंड के मौसम में  फैलता है। इस समय जब विदेशी पक्षी भारत में आते हैं। इसके जरिए यह भारतीय पक्षियों में वायरस आता है। देश भर में 15 हजार से ज्यादा पक्षी विहार हैं। यहां देसी के साथ विदेशी पक्षियां मिल जाती हैं। इस कारण अधिकतर जंगली पक्षी इसके प्रभाव में आ जाते हैं। इसके बाद पॉल्ट्री की पक्षियों में यह बीमारी देखी जाती है। इस बार भी बत्तख और चिकन में यह बीमारी देखी जा रही है। इस वायरस से प्रभावित बत्तख या चिकन खानेवाले लोग इसके प्रभाव में  आ जाते हैं।

सुरक्षा के लिए एहतियात जरूरी
किसी भी प्रकार की दहशत में आए बिना हम एहतियात बरत कर बर्ड फ्लू के वायरस से बच सकते हैं।  डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, यदि पोल्ट्री उत्पादों को 70 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में अच्छी तरह पकाकर खाया जाए, तो वह भोजन सुरक्षित है। कच्चे या अधपके मांसाहार से दूर रहें। चिंता का विषय यह है कि भारत में भी खान-पान के मामले में हर दिन नए-नए प्रयोग होने लगे हैं। ऐसे में सावधानी की जरूरत अब पहले से ज्यादा है। कोविड-19 के दुष्प्रभाव के बाद हमें बर्ड फ्लू की चुनौती को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। भारत के हर नागरिक को इसके लिए सतर्क रहना होगा। अपने पारंपरिक खान-पान पर ध्यान देने की जरूरत है। बाजार में  पके मांसाहार से हमें दूर रहना चाहिए। इस समय लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। सरकार की ओर से भी जागरुकता अभियान चलाना चाहिए, ताकि हमारा स्वास्थ्य ढांचा ठीक रहे। यह संक्रामक बीमारी है। इसलिए अगर इन दिनों कहीं पर अपने आप कोई पक्षी मरा हुआ दिखे तो उससे दूर रहें। उसे न छूएं, उससे संक्रमण का खतरा हो सकता है।

अब तक कोई केस सामने नहीं आया

पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह ने दावा किया कि भारत में अब तक कोई इंसान इसकी चपेट में  नहीं आया है। इसके बावजूद भारत सरकार बर्ड फ्लू को ले कर सतर्क है। विदेशी पक्षियों के आगमण काल के शुरुआत में  ही परामर्श जारी किया गया था। अक्तूबर में ही इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी। इसके लिए कंट्रोल रूम बना हुआ है। उनका कहना था कि ओआईई के गाइडलाइन के अनुसार, अच्छी तरह से पके मीट और अंडे का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे कोई रोग नहीं फैलता। हालांकि, इस दौरान मंत्री ने कहा कि भोपाल में हुई जांच में बर्ड फ्लू के एच5एन8 पाया गया है। 

                                                                                                            -तरुण कुमार कंचन

                                                                                 दिल्ली में बत्तखों पर छिड़काव की तस्वीर
 
 

Sunday 3 January 2021

किसान आंदोलन : अब तो मान जाइये प्रधानमंत्री जी Farmer Movement: Now accept Prime Minister

 


किसानों के लिए जमीन जान से ज्यादा प्यारी है। यही कारण है कि पिछले 26 सितंबर से किसान लगातार दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। उन्हें आशंका है कि भारत सरकार के नए कृषि कानूनों से उनकी जमीनें पूंजीपतियों की जागीर न बन जाए। आशंका है कि उन्हें बीच बाजार में न लूट ले। हो सकता है कि ये आशंकाएं निर्मूल हों। हो सकता है कि ये आशंकाएं राजनीति के तहत फैलाई गई हों, मगर सच यह है कि देशभर में किसान और उनका परिवार भारत सरकार के नए कानूनों के खिलाफ सड़क पर है। पूस की रात में भी सड़क पर सो रहे हैं। किसान बीमार हो रहे हैं और उनकी जानें भी जा रही हैं। भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मल्लिक ने बताया कि आंदोलन के दौरान विभिन्न कारणों से 50 किसानों की जान जा चुकी है। इसलिए, प्रधानमंत्री जी मान जाइये, किसानों की बात सुन लें।


विवादित कानून को खत्म होना चाहिए
प्रधानमंत्री जी, यह सच है कि जिस दिन इस कानून को संसद ने पास किया था उसी दिन से विवाद भी पैदा हो गया। आपकी मंत्री हरसिमरत कौर ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भी आप सचेत नहीं हुए। दो दिनों से बारिश और ओले पड़ रहे हैं फिर भी देश के किसान अनुशासित होकर सड़क पर आपके पुनर्विचार का इंतजार कर रहे हैं। बहुत ही शालीन अपनी बात आपकी  सरकार के समकक्ष रखा है। उन्हें इत्मीनान करिए कि उनके साथ कोई अन्याय नहीं होगा और न ही उनकी जमीन पर किसी की कुदृष्टि पड़े। ये वे लोग जो खेतों में  हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। आप याद करिए उस समय को जब दुनिया आर्थिक मंदी से परेशान थी। सारे कॉरपॉरेट सेक्टर गिर रहे थे और परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था आपके देश को संभाल लिया। फिर कृषि में कौन ऐसा परिवर्तन हो जाएगा जो किसानों को उद्यमी बना देगा। 

रातोंरात बदलाव संभव नहीं
यह सच है कि आप बदलाव चाहते हैं। इसका कतई यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि एक रात में सब कुछ बदल जाएगा। प्रथाएं हमारे यहां परंपरा से निकली हैं और उसे किसी भी स्थिति में खत्म करना संभव नहीं है। अगर ऐसा होता तो देश में अब तक छूआछूत और जाति-पाती की व्यवस्था खत्म हो गई होती। इसके खिलाफ आज से कानून नहीं है। हालांकि समाज अब सब स्वीकार करने लगा है। इसलिए कोई भी कानून भारतीय मानसिकता को तत्क्षण नहीं बदल सकता है। आपने एक बार ही तीन कानून बनाकर कृषि क्षेत्र में  आमूलचूल परिवर्तन लाने की कोशिश की। आपने इसके लिए देश के किसानों को तैयार नहीं किया था।  देशव्यापी विमर्श भी जरूरी है। विभिन्न राज्यों की सहमति भी आवश्यक है।

 जिद और आग्रह में 50 किसान स्वर्ग सिधार गए
प्रधानमंत्री जी, यह निश्चित मान लीजिए कि आपको अपने कानून से पीछे हटना पड़ेगा अन्यथा जिद और आग्रह के बीच सिर्फ रार बचेगा। अनुशासित किसानों का धैर्य जवाब देने लगा है। वे निराश होने लगे हैं।  किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने लगी है। बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। कोरोना जैसी महामारी के बीच भी वे जत्थों में रह रहे हैं जहां कोविड -19 के वायरस की कुदृष्टि कभी भी पड़ सकती है और ऐसा हुआ तो संभाले नहीं संभलेगा। वे सभी दूर-दूर से पहुचे किसान हैं। सड़क पर रहकर बीमार पड़ रहे हैं। रोज मौत की तादाद  बढ़ रहे हैं। आंदोलनरत 50 से अधिक किसानों की मौत विभिन्न कारणों से हो गई है। हर दिन सीमापर अनहोनी घटनाएं घट रही हैं। इसके बावजूद किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं।

अन्नदाताओं की मौत की झड़ी
 रविवार तो बहुत ही हृदय विदारक रहा। एक की दिन में  तीन-तीन किसानों की मौत हो गई।  कुंडली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में हिस्सा लेने आए दो पंजाब निवासियों बलबीर सिंह गोहाना और निर्भय सिंह की मौत हो गई है। युधिष्ठर सिंह नामक एक किसान को दिल का दौरान पड़ने के बाद नाजुक हालत में पीजीआई चंडीगढ़ भेजा गया है। वहीं टिकरी बॉर्डर पर जमे किसानों में से एक जींद निवासी जगबीर (66) की शनिवार की रात मौत हो गई। मौत का कारण ठंड से ह्रदय गति रूकना बताया गया है। उत्तरप्रदेश-दिल्ली की सीमा के निकट यूपी गेट पर मौजूद एक किसान की शुक्रवार की सुबह मौत हो गई। उसका नाम गलतान सिंह तोमर (57) निवासी बागपत जिला का था।बताया जाता है कि अत्यधिक ठंड होने के कारण तोमर की मौत हुई। यूपी गेट पर चल रहे किसान आंदोलन में शनिवार को रामपुर के रहने वाले एक किसान का शव मोबाइल टॉयलेट में फंदे से लटका हुआ मिला। मृतक के पास से गुरुमुखी में लिखा एक सुसाइड नोट भी मिला। जिसमें मृतक ने कृषि कानून वापस ना होने पर आत्महत्या करने की बात लिखी है। इसी तरह आंदोलन में शामिल कई किसानों की  मौत हो चुकी है।
अब तक हो चुकी इन किसानों की मौत- गुरजंत सिंह (60), बिछौना, मानसा गुरबचन सिंह (80), भिंदर खुर्द, पंजाब लखबीर सिंह (57 ), पंजाब मेवा सिंह (48 ), खोटे गाँव , पंजाब जगराज सिंह (57 ), कादयान, पंजाब मेघराज बावा (70 ), गोबिंदपुरा,संगरूर लभ सिंह (65 ), संगरूर कप्तान दिलबर हुसैन (69 ), रोपड़ हरबान सिंह (62 ), पटियाला जोगिन्दर सिंह (54 ), तरन तारण गुरमेल कौर (70), संगरूर ठंड से मरने वाले किसान- गज्जन सिंह (55 ), खातरा गाँव लुधियाना गुरजंत सिंह, मानसा अजय मोरे (32 ),  गुरप्रीत सिंह (32 ), गोपालपुर, लुधियाना मुख्तियार सिंह (62 ), किशनगढ़, मानसा वज़ीर सिंह (70 ), किशनगढ़, मानसा धन्ना सिंह (45 ), मानसा जनक राज (57 ), धनौला, बरनाला बलजिंदर सिंह (32 ), झम्मात, लुधियाना।

अचानक किसान स्टार्ट अप कैसे बन जाएं

आपको याद होगा आपने किसानों से दोगुनी आय कराने का वादा किया था। इस मामले में  आपने चार बातें कच्‍चे माल की लागत कम करना, उपज का उचित मूल्‍य सुनिश्चित करना, फसलों की बर्बादी रोकना और आमदनी के वैकल्पिक स्रोत सृजित करना कहा था। किसान भी आपसे यही माग रहे हैं। उन्हें अपनी जमीन पर हक चाहिए। अपनी फसल के लिए किसान उचित मूल्य चाहते हैं और यह उनका वैधानिक अधिकार होना चाहिए। प्रधानमंत्री से आप अचानक किसान को अटार्ट अप बनाने की सोच लिए। यह उन्हें कतई स्वीकार नहीं है। किसानों को जो सपने आपने दिखाए हैं उसे प्राप्त करने के लिए  वार्षिक कृषि विकास दर 14.86 फीसदी होनी चाहिए। इसे प्राप्त करने टेढ़ी खीर होगी।

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जब नीतीश कुमार  थे कृषि मंत्री
प्रधानमंत्री जी, आपको पता होगा जब नीतीश कुमार देश के कृषि मंत्री बनाए गए थे तब उन्होंने किसानों और कृषि के विकास के लिए एक रोडमैप तैयार किया था। 28 जुलाई 2002 को केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नीतीश कुमार ने नई राष्ट्रीय कृषि नीति संसद में पेश किया था। उस समय उन्होंने कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4 प्रतिशत की विकास दर निर्धारित की थी।  वह भी दो दशकों के लिए किया गया था। ऐसा कहा गया कि पहली बार आजादी के पांच दशक बाद कृषि के लिए अलग से कोई कानून बना है।कृषि नीति में भूमि सुधार के माध्यम से गरीब किसानों को भूमि प्रदान करना, कृषि जोतों का बढाना, कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ाना, किसानों को फसल के लिये कवर प्रदान करना, किसानों के बीजों के लेन-देन के अधिकार को बनाये रखना जैसे लक्ष्यों को निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त मुख्य फसलों की न्यूनतम मूल्य नीति को जारी रखने का आश्वासन दिया गया है। फिर क्या हुआ कि अचानक कृषि कानून बना कर किसानों पर थोप दिया गया।


अंतर मंत्रालय समिति की रिपोर्ट पर अमल क्यों नहीं
अप्रैल 2016 की बात है किसानों की आय को दोगुना करने के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया गया था। उस समिति ने सितंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट कृषि मंत्री को  सौंप दी थी। उसमें किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक जबर्दश्त प्रतिमान के प्रस्तुत किया गया था। उसमें  बताया गया था कि किसान अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग करे  और फसल सघनता को बढ़ाए। नकदी और अधिक कीमतवाली फसलों को उगाने पर ध्यान दे। उसमें यह भी बताया गया था कि किसानों को खेती में  लागत कम करनी होगा। इसके साथ जोखिम प्रबंधन और सूखा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा।  उस दौरान सबसे बड़ी बात यह कही गई थी कि राज्य सरकारों के माध्यम से मंडियों में  सुधार की जाएगी। बिचौलियों से किसानों को बचाया जाएगा। अब क्या हो गया कि नए कानून में  समानांतर मंडी खड़ी करने की बात कही जा रही है। कहीं भी किसान मंडी लगा सकता है। 


                                                                                                          - तरुण कुमार कंचन


अपशगुन माने जाते थे जगतगुरु रामभद्राचार्य Jagatguru Rambhadracharya was considered a bad omen

जो बालक बचपन में अपशगुन बन गया था। शादी विवाह में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता था। अपने लोग भी साथ नहीं ले जाते थे। आज पूरे दे...