भगवान
रूद्र का सृष्टि पर शासन शुरू हो गया है। भगवान विष्णु की योग निद्रा के बाद
शुक्रवार से भगवान शिव भी शयन में चले गए। सृष्टि का संचालन भगवान रुद्र के हाथों
में है। भगवान शिव का दूसरा स्वरूप भगवान रुद्र हैं, जो अपने नियमों के प्रति सख्त
हैं। माना जाए तो वर्तमान में राष्ट्रपति शासन की तरह सृष्टि का भी संचालन होगा।
इस समय धर्म-कर्म और नियम के प्रति कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। भगवान रुद्र
की नजर हर कर्म पर होगा। तदनुसार लोग प्रतिफल प्राप्त करेंगे।
सत्कर्म के प्रति सतर्क
भगवान
रुद्र किसी को भी गलती पर माफी नहीं देते। उन्हें अधोकर्म की सजा भुगतनी पड़ती है।
हालांकि प्रसन्न रहे तो श्रद्धालुओं पर खूब कृपा बरसाते हैं। इस कारण लोग सावन माह
में सात्विक रह कर धर्म-कर्म-दान और अध्यात्म के प्रति सजग रहते हैं। खासकर सावन में
कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। लेकिन, पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना के
प्रकोप के कारण श्रद्धालु कांवड़ यात्रा से वंचित रह जाएंगे। हालांकि उन्हें
जलाभिषेक का मौका मिल सकता है।
बोलबम और बम-बम भोले की स्वर लहरियां नहीं उठेगी
कोरोना की दूसरी लहर में मौत ने देश-दुनिया, समाज और व्यवस्था को कुछ इसतरह झकझोर कर रख दिया कि भारत के सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। कांवड़ यात्रा के लिए यूपी सरकार की अनुमति पर रोक लगा दी। इसका प्रभाव बिहार और झारखंड़ की कांवड़ यात्रा पर पड़ा। वहां भी महीनेभर चलनेवाली कांवड़ यात्रा रोक दी गई। सावन में जब काली घटा उमड़ने-घुमड़ने लगती, आसमान से कभी रिमझिम तो कभी झमाझम बारिश होने लगती। मंद-मंद हवा चलने लगती है। लोगों को भीषण गर्मी के बाद जब शीतलता का अहसास होता है तो कांवडियों का मन भी खुशी से मोर की तरह नाचने लगता है। उसके कांवड़ या पैरों में बंधे घुंघरू से पूरा ब्रह्मांड झंकृत होने लगता है। होठ कांपने लगते हैं। पैर थिरकने लगते हैं। हर ओर बोलबम और बम-बम भोले की स्वर लहरियां उठने लगती है। इस साल भी हम ऐसी स्वर लहरियों से वंचित रह जाएंगे। यूं तो कांवड़ यात्रा पूरे देशभर में होती है, पर दो जगहों की कांवड़ यात्रा को ज्यादा प्रसिद्धि मिली है।
सुल्तानगंज
से बाबाधाम देवघर की कांवड़ यात्रा
बिहार के सुल्तानगंज से झारखंड के बाबा बैद्यनाथ धाम देवघर तक की कांवड़ यात्रा दुनिया का सबसे लंबा मेला है और यह मेला पूरा सावन महीना चलता है। सुल्तानगंज से देवघर की दूरी 105 किलोमीटर है। राह पथरीली होने के होने के कारण यबां की यात्रा दुरुह हो जाती है, मगर श्रद्धालुओं का अगाध स्नेह बाबा भोले शंकर की ओर खींचे चला जाता है। यह राह इतना दुरूह है कि बीच में एक पहाड़ी रास्ता मिलता है, जिसे सुईया पहाड़ कहते हैं। इसके नुकीले पत्थर सुई की तरह पांव में चुभते रहते हैं।
नंगे
पांव 105 किमी की यात्रा
सबसे बड़ी बात यह है कि यात्री 105 किलोमीटर की
यात्रा नंगे पांव करते हैं। रास्ते भर में लोग एक-दूसरे को बम कह कर पुकारते हैं।
जैसे बच्चा बम, माता बम, बहन बम, बुढ़ा बम, साथी बम। यहां दो तरह के कांवड़िये
चलते हैं। एक वह जो बाबा को सिर्फ गंगाजल अर्पण करना चाहते हैं। दूसरा वह जो 24 घंटे
में बाबा को जलाभिषेक करना चाहते हैं। ऐसे श्रद्धालु बिना कुछ खाए-पीए, बिना
विश्राम, बिना शंका समाधान के बाबा मंदिर में पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं। सावन में
प्रतिदिन यहां एक लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं। सावन सोमवारी के दिन यह
संख्या दोगुनी हो जाती है। दूसरी बड़ी बात
यह है कि श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ को सिविल भगवान समझते हैं। इस कारण जो भी यात्री
यहां आते हैं वह बाबा बासुकीनाथ में जलाभिषेक करने जरूर जाते हैं। मान्यता है कि
बाबा बासुकीनाथ अपने लोगों की फौजदारी समस्या का हल करते हैं।
हरिद्वार
से कांवड़ यात्रा
सौजन्य - फेसबुक
सावन की प्रतिपदा से कांवड़ियों की यात्रा शुरू हो जाती है। वेस्ट यूपी के श्रद्धालु एक सप्ताह तक कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं। हालांकि हरिद्वार में कांवड़ मेला 15 दिनों का होता है। हरिद्वार से वेस्ट यूपी के अलावा राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कांवड़िये गंगाजल उठाते हैं। इसके बाद सभी अपने घर की ओर पैदल रवाना होते हैं। सभी जगह के कांवड़िये अलग-अलग समूहों में चलते हैं। बम भोले की सामूहिक ध्वनि से कांवड़िये ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यहां की सबसे बड़ी खाशियत उनका कांवड़ होता है, जो बड़े मनोहारी होते हैं। अद्भुत होते हैं। बड़े-बड़े कांवड़ होते हैं। कुछ कांवड़ मंदिर के आकार के होते हैं। उसके साथ सैकड़ों श्रद्धालु जुटे रहते हैं। ढोल-मंजीरों के साथ शिव भक्ति के गीतों पर कांवड़िये जब झूमते हैं तो आसपास के लोग अनायास उधर खींचे चले आते हैं। कांवड़ियों के लिए रास्ते भर में सेवा शिविर लगे रहते हैं। स्पीकर पर भक्ति गीतों की रसधार बहती रहती है। कांवड़िये उस रस गोते लगाते हुए नृत्य में मग्न हो जाते हैं। कांवड़ सेवक उनपर फूलों के बारिश करते हैं और प्रकृति में घनघोर घटा छा जाती है। बादल फुहार बरसाकर उन्हें शीतलता प्रदान करते हैं। अष्टमी के जलाभिषेक का यहां अतिरिक्त महत्व है। वेस्ट यूपी के लोग मेरठ में बाबा औघड़नाथ या बागपत के पुरा महादेव मंदिर में जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ते हैं।
कोरोना
ने दो साल से छिन लिया मोहक मौका
कोरोना
के कारण 2020 से ही कांवड़ यात्रा बंद है। इस बार ऐसा लग रहा था कि लोगों को अपने
अराध्यदेव सृष्टि संचालक भगवान शिव के प्रति समर्पण का मौका मिलेगा। उत्तरप्रदेश
सरकार ने इसकी अनुमति भी दे दी थी। दूसरी ओर उतराखंड और झारखंड़ की सरकार इस पर
अभी विचार ही कर रही थी कि सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश देते हुए ऐसे किसी भी भीड़
पर रोक लगा दी। अंततः यूपी सरकार को भी अपने आदेश वापस लेने पड़े। 2021 में भी शिवभक्त
कांवड़ यात्रा से वंचित रह गए।
कांवड़
यात्रा को रोकने के लिए पुख्ता सुरक्षा
पूरामहादेव मंदिर बागपत |
हरिद्वार
जिले की सीमा से किसी श्रद्धालु को वापस कर दिया जाएगा। इसके लिए सीमा के अलावा हरकी पैड़ी पर भी
भारी पुलिस बल को तैनात किया गया है। उतराखंड़ सरकार की ओर से स्पष्ट आदेश दिया
गया है कि यदि कोई कांवड़िया हरिद्वार तक पहुंच जाता है तो उन्हें क्वारंटाइन कर
लिया जाएगा और आपदा प्रबंधन नियम के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा। इसके लिए 10 पीएसी कंपनी और 900 से अधिक
पुलिसकर्मियों को लगाया गया है। इसी तरह झारखंड स्थित बाबा बैद्यनाथधाम देवघर में
कांवड़िये को घुसते ही गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया गया है। स्पष्ट है बड़े
मंदिरों में इस बार कांवड़िये गंगाजल से अभिषेक नहीं कर पाएंगे। मेरठ जोन के आईजी
प्रवीण कुमार का कहना है कि थानास्तर तक इसकी निगरानी होगी ताकि सुप्रीम कोर्ट के
आदेश का कहीं उल्लंघन न हो। हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में गंगा घाट और बागपत के
पुरामहादेव मंदिर में बेरिकेडिंग कर दी गई है।
जलाभिषेक
का मिल सकता है मौका
कांवड़ यात्रा की मान्यताएं
- सबसे पहले भगवान परशुराम ने बागपत स्थित पुरा महादेव मंदिर में गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था।
- दूसरी मान्यता यह है कि स्वयं भगवान श्रीराम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर झारखंड़ स्थित देवघर में पहली बार जलाभिषेक किया था।
- तीसरी मान्यता है कि त्रेता युग में श्रवण कुमार ने कांवड़ में अपने माता-पिता को बैठाकर हरिद्वार ले गए थे। वहां से लौटते वक्त गंगाजल भी कांवड़ में रख लिया था। तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई है।
- चौथी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान मिले विष को भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया था। उससे उनका कंठ नीला पड़ गया था। देवी-देवताओं ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए गंगाजल से स्नान कराया था।
गीतों में शिवभक्ति
भगवान
शिव के प्रति अगाध आस्था और अनन्य प्रेम की प्रतीक कांवड़ यात्रा के दौरान शिव
गीतों का श्रवण करते हैं। उन मधुर गीतों में भगवान शिव के प्रति समर्पण का अद्भुत
सौंदर्य होता है। उनमें कुछ निम्नलिखित हैः-
1.
बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया... #MaithiliThakur #RishavThakur #AyachiThakur
2.
मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा - http://www.youtube.com/tseriesbhakti
3. शिवशंकर को जिसने पूजा -
http://www.youtube.com/tseriesbhakti
सावन में जलाभिषेक का मौकाै मिलेगा
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