श्री राजीव मित्तल (फ़ाइल फोटो)
राजीव मित्तल जी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। वह मेरे लिए सिर्फ न्यूज एडीटर या सम्पादक ही नहीं, अभिभावक भी थे। सहृदयी, विनयी, मिलनसार के साथ एक अखड़ पत्रकार भी हमने खोया है। मुजफ्फरपुर हिन्दुस्तान में न्यूज एडीटर रहते समय मैंने उनके साथ कई सम्पादकीय यात्राएं कीं। सीतामढ़ी दौरा हो या मधुबनी प्रवास। दरभंगा में भी मैं उनके साथ था। पूजा पाठ के प्रति बहुत लगाव नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने मेरे साथ उच्चैठ काली माता का दर्शन किया। यह वह स्थान है जहां मां काली के दर्शन से महाकवि कालिदास को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने गोनू झा की कहानियां वहां के लोगों से सुना। उनकी अतिशय आत्मीयता मेरे साथ थी।उन्होंने मेरे लिए दरभंगा में श्यामा मन्दिर का भी दौरा किया।
हिन्दुस्तान में रहते हुए मुझे लगा कि मुजफ्फरपुर से निकलना चाहिए तो उन्होंने मेरे लिए रास्ता बनाया और मैंने अमर उजाला गोरखपुर ज्वॉइन किया। इसके बाद जब उनके हाथ में ताकत मिली तो 2008 में मुझे मेरठ बुला लिया। सितम्बर 2008 में उनके नेतृत्व में दोबारा हिन्दुस्तान ज्वॉइन किया। राजीव मित्तल जी हमारे सम्पादक थे । मुझे प्रादेशिक प्रभारी का काम दिया गया था। मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, सहारनपुर और बुलन्दशहर की टीम बनाने में भी मुझे अहम भूमिका दी गई थी। उसके बाद मेरठ में हिन्दुस्तान उनके नेतृत्व में आगे बढ़ गया। कुछ महीनों के बाद उनका तबादला कानपुर कर दिया गया।
मित्तल सर कानपुर जरूर चले गए थे, मगर दिल मेरठ में ही रहा। सप्ताह- दो सप्ताह में फोन कर मेरठ का समाचार लेते रहते थे। इसके बाद जब सोशल मीडिया का दौर आया तो उन्होंने फेसबुक पर अपनी पत्रकारिता का जमकर उपयोग किया। उन्होंने मुजफ्फरपुर में रहते हुए व्यवस्था और राजनेताओं को लेकर जो उलटबांसी शुरू किया वह फेसबुक पर भी निरंतर चलता रहा। बिना लागलपेट उनकी लेखनी चलती रही। अपने प्रशंसकों का भी लेख उन्हें पसंद नहीं आता था, तो कड़ी टिप्पणी करते थे। हाल ही में किसान आंदोलन को लेकर मेरे एक पोस्ट से वह नाराज हो गए। इस पर उन्होंने मेरी लानत मलानत करते हुए लिख दिया कि वह मुझसे बात नहीं करेंगे। मुझे पता था कि उनका यह गुस्सा मेरे आलेख पर है। विधि का विधान हुआ कि वह रूठकर ऐसी अनन्त यात्रा पर निकल गए, जहां से कोई वापस नहीं आता। राजीव मित्तल सर जी को विनम्र श्रद्धांजलि।