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Friday 11 December 2020

स्कूल बैग नीति 2020 : बच्चे अब तन कर स्कूल जाएंगे, घर में धूम मचाएंगे



कोरोना काल के बीच केंद्र सरकार ने बच्चों को मुस्कुराने का बड़ा मौका दिया है। अब बच्चे ऊकड़ू होकर हांफते हुए नहीं तनकर मुस्कुराते हुए स्कूल पहुंचेंगे। घर में भी खूब धूम मचाएंगे, जमकर खेलेंगे क्योंकि होमवर्क का डोंट फिकर। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी नई स्कूल बैग नीति 2020 के अनुसार अब स्कूल किसी बच्चे से पांच किलो से ज्यादा वजनी बस्ते का बैग नहीं मंगवा सकता है। दूसरी ओर कक्षा दो तक के बच्चों को अब कोई होमवर्क नहीं मिलेगा।
मंत्रालय का मानना है कि बस्ते के बोझ से बच्चों में शारीरिक पीड़ा तो बढ़ती ही है। मानसिक रूप से भी बच्चे कमजोर हो जाते हैं। बच्चों का व्यक्तित्व विकसित नहीं होता है। ऐसे बच्चों में आत्मनिर्णय की क्षमता घट जाती है। अनेक अध्ययनों मं बताया गया है कि जब बच्चों के बढ़ने या लंबे होने की उम्र होती है, तब उन पर जरूरत से ज्यादा बोझ लादना खतरे से खाली नहीं है। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण में पाया गया था कि भारत में 68 प्रतिशत बच्चे पीठ दर्द से पीड़ित हो सकते हैं और यह दर्द न केवल हमेशा के लिए बना रह सकता है, बल्कि कूबड़ होने की समस्या भी पैदा कर सकता है।


शिक्षा का व्यवसायीकरण ने बढ़ाया बोझ
 शिक्षा के व्य़वसायीकरण के साथ-साथ बच्चों के बस्तों का बोझ बढ़ता चला गया।  शिक्षा पर पैसा हावी होता गया। कॉन्वेंट के नाम पर प्राइवेट स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह फैल गए। सरकारी शिक्षा का स्तर गिरता चला गया। सरकारी स्कूल सिर्फ सर्टिफेकेट बांटने में रह गया। इस कारण कम आयवाले लोग भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजने लगे। दूसरी ओर स्कूलों के बीच प्रतिद्वंद्विता बढ़ती चली गई। कमाई बढ़ाने के लिए नए-नए तरकीब ढूंढ़े जाने लगे। एक-एक चैप्टर के लिए अलग-अलग किताबों की अनुशंसा की जाने लगी। इससे बच्चों के कंधे का भार बढ़ने लगा। एक सर्वें में यह बात उभर कर सामने आई कि सभी किताब न ले जाने पर बच्चों को दंड दिया जाता है। इस कारण सभी पाठ्यपुस्तकों के साथ-साथ साइड पेपर भी स्कूल में लाना मजबूरी हो गई। इससे बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास तो रुका ही व्यक्तित्व का विकास भी रूक जाता है।


बर्षों से उठती रही मांग
पिछले कई सालों से बच्चों के बस्ते को हल्का करने की मांग की जा रही थी। समय-समय पर सरकार की ओर से भी इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयान आते रहे हैं। इधर, दो दिन पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस मुद्दे पर  गंभीरता दिखाई और  स्कूल बैग नीति 2020 की घोषणा कर दी। इसके तहत बच्चों को बहुत सारी सहूलियतें दी गई हैं। मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नए शैक्षणिक सत्र से इन फैसलों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है।

 शरीर के वजन के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा बैग
केद्रीय शिक्षा मंत्रालय  की घोषणा के मुताबिक कक्षा 1 से 10वीं तक के छात्रों के स्कूल बैग का भार उनके शरीर के वजन के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना होगा।  पहली कक्षा के छात्रों के लिए अधिकतम तीन किताबें होंगी। उन किताबों का वजन वजन 1,078 ग्राम तक होगा। बारहवीं में पढ़ने वाले छात्रों के लिए कुल छह किताबें होगी, जिनका वजन 4,182 ग्राम तक ही होगा। इस तरह स्कूली छात्रों के बैग में किताबों का वजन 500 ग्राम से 3.5 किलोग्राम ही रहेगा। कॉपियों का वजन 200 ग्राम से 2.5 किलोग्राम रहेगा। बस्ते में लंच बॉक्स और बोतल का वजन भी शामिल होगा।

दूसरी कक्षा तक होमवर्क नहीं
 दूसरी कक्षा तक के बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाएगा। कक्षा 3 से 6 तक के बच्चों के लिए एक सप्ताह में 2 घंटे तक का ही होमवर्क होगा। आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए प्रतिदिन एक घंटे का होमवर्क और कक्षा 9 से 12 के लिए अधिकतम 2 घंटे का होमवर्क सीमित कर दिया गया है।

किताबों के पीछे वजन छपेगा

सरकार ने वजन पर नजर रखने के लिए किताब के पिछले पेज पर वजन छापने का सख्त निर्देश दिया है। पहली कक्षा के बच्चों के लिए  कुल तीन किताबें होंगी, जिनका वजन 1,078 ग्राम तक होगा। बारहवीं में छात्रों के लिए कुल छह किताबें होगी, जिनका वजन 4,182 ग्राम तक ही होगा।
 
ट्रॉली वाले बैग पर रोक
इन दिनों स्कूलों बच्चों के पास ट्रॉली वाले बैग की चलन है। मंत्रायल ने ऐसे बैग पर रोक लगा दी है।  मंत्रालय का मानना है कि ट्रॉली वाले बैग से बच्चों को चोट लग जाती है। सीढि़यों  पर चढ़ने में  बच्चों को चोटें लग जाती हैं।
 
स्कूलों में तौल मशीन
 बस्ते का वजन चेक करने के लिए अब स्कूलों में तौल मशीन रखी जाएगी।  स्कूल के बैग के वजन की निगरानी करनी होगी।

 बड़ी होगी स्कूलों की जिम्मेदारी
सरकारी स्तर से जब यह तय कर लिया गया है कि अब बच्चों का बोझ कम करना है तो स्कूलों की जिम्मेदारी बड़ी गई। अब चूंकि नीति बनाकर अच्छी पहल को लागू करने की कोशिश हो रही है, तो इस पर खासतौर से स्कूल संचालकों को ध्यान देना चाहिए। वे अपनी समय सारिणी सुधारें। केवल उन्हीं किताबों और कॉपियों को स्कूल मंगवाएं, जिनकी जरूरत है। इसके साथ पाठ्यक्रम को हल्का करने पर भी विचार करना होगा। स्कूलों में पीरियड की संख्या घटानी होगी। कुछ स्कूल काफी सारी किताबें और कॉपियां खुद ही रख लेते हैं, जो बच्चों का बोझ करने का एक अच्छा तरीका है।

                                                                                                  -तरुण कुमार कंचन


Wednesday 9 December 2020

किसान आंदोलन : केंद्र सरकार की साख दांव पर Kisan agitation: on credit attacks of central government

 


 

गृह मंत्री अमित शाह से किसान नेताओं की मुलाकात के बाद मंगलवार को एक बार लग रहा था कि अब आंदोलन का समाधान निकलने वाला है। मंगलवार की रात अमित शाह के साथ 13 किसान नेताओं ने मुलाकात की थी और तय हुआ था सरकार किसानों की मांगों पर लिखित प्रस्ताव दे।  बुधवार को केंद्र सरकार की ओर से एक दर्जन से अधिक मागों पर लिखित प्रस्ताव भेजा गया। सभी प्रस्तावों में आवश्यक बदलाव की बात कही गई। सरकार ने अपनी मंशा प्रदर्शित कर दी कि वह नए कानून में संशोधन कर सकती है। दूसरी तरफ किसान नेता इस बात पर अडिग रहे कि सरकार तीनों नए कानून को रद्द करे। इसके पहले कोई प्रस्ताव बेकार है। सरकार के प्रस्ताव को किसानों ने एकमत से खारिज कर दिया।

टकराव के मूड में किसान
 केंद्र के प्रस्तावों को खारिज करते हुए किसान नेताओं ने अपने आंदोलन को और तेज करने का मन बना लिया है।  दिल्ली सीमा पर डटे किसान संगठनों के नेताओं ने 14 दिसंबर को दिल्ली की घेराबंदी का ऐलान कर दिया। किसानों ने कहा कि देश के सभी जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन के साथ भाजपा के सांसदों और विधायकों का घेराव किया जाएगा। चिंता का विषय यह है कि किसानों ने एक कॉरपोरेट हाउस के उत्पादों का बहिष्कार करने की घोषणा की है। संयुक्त किसान मोर्चो के नेता जगबीर सिंह ने बताया कि केंद्र का प्रस्ताव गोलमोल है, इसमें कुछ भी स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द करना, एमएसपी पर नया कानून बनाना और कृषि उपज की गारंटी खरीद से नीचे कुछ भी हमें कुछ भी स्वीकार नहीं होगा। किसानों ने घोषणा की कि सरकार अगर नहीं समझती तो हम दिल्ली-जयपुर और दिल्ली आगरा एक्सप्रेस वे को बंद कर देंगे। 12 दिसंबर को एक दिन के लिए देशभर के सभी टोल प्लाजा को फ्री कर दिया जाएगा। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि उपरोक्त मांगों पर सभी किसान संगठन एक हैं। आंदोलन की आवाज को गांव-गांव में किसानों तक पहुंचाई जाएगी।
 
 केद्र सरकार के गले की फांस

केंद्र की मोदी सरकार ने वर्तमान कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिये। इनका विरोध भी जम कर हुआ। खास कर नागरिकता कानून पर अब भी विवाद बना है। सीएए के विरोध में सबसे लंबा धरना-प्रदर्शन चला। किसी ने किसी रूप में  सब पर विजय प्राप्त कर लिया गया। लेकिन कृषि कानून सरकार के गले की फांस बन गया है। सरकार बैचेन है। कई मंत्री इस मुद्दे को सुलझाने में लगे हैं। गृहमंत्री अमित शाह को भी सरकार ने आजमा लिया। दो-दो दफे किसानों से अमित शाह ने बात की। मगर नतीजा सिफऱ रहा। कोई सुनवाई नहीं हुई। किसानों उनकी बातों को नकार दिया। बुधवार को प्रस्ताव खारिज होने और कृषि कानून को वापस करने की मांग के बाद सरकार सकते में आ गई है। ऐसा इसलिए हुआ कि मोदी सरकार के असली वोटर भी यही हैं। उनकी नाराजगी सरकार पर भारी पड़ जाएगा। उन किसानों के साथ सख्ती भी नहीं की जा सकती है।

किसानों को मनाना सबसे बड़ी चुनौती
सरकार के नुमाइंदों का कहना है कि प्रस्ताव में उन सभी शंकाओं को निर्मूल कर दिया गया था जिन पर किसानों की आपत्तियां थीं।  सरकार ने अपने लिखित प्रस्ताव में एमएसपी समेत नौ मुद्दों के समाधान का आश्वासन दिया है। यह भी कहा है कि वह खुलेमन से हर शंका पर विचार करने को तैयार है। फिरभी किसानों ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकारी मसौदे पर किसानों को सकारात्मक होकर विचार करना चाहिए। हर मसौदे पर विमर्श होना चाहिए था। बिना विचार और विमर्श किए मसौदे को खारिज कर देना अनुचित है।  य़दि किसान सकारात्मक रुख नहीं अपनाएंगे तो बातचीत का रास्ता बंद हो जाएगा।  लोकतंत्र में विरोध और विमर्श से देश आगे बढ़ता है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि फिलहाल सरकार को समझाने की कोशिश जारी रहेगी। जानकार मानते हैं कि सरकार के लिए पूरी तरह से पैर पीछे करना संभव नहीं होगा। क्योंकि ऐसा करने का मतलब है कि विपक्ष को कोई नया मुद्दा खड़ा करने का मौका देना। विपक्ष इसे और धार देने में जुट जाएगा। देश के विभिन्न इलाकों के अलावा विदेशों में भी इस कानून की चर्चा हो रही है। किसानों के समर्थन में  लोग खड़े हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को बहुत सोच समझकर कदम उठाने पड़ेंगे।

अब देखते हैं कि सरकार के नए प्रस्ताव में क्या है
किसानों की मांगों को देखते हुए सरकार ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 तथा कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 में  बदलाव के साथ कई अन्य मुद्दों पर खुले मन से मसौदा तैयार किया ताकि अन्नदाताओं को सड़क से उठाकर खेत में पहुंचाया जा सके। मगर बात नहीं बनी।

1.  किसानों को आशंका है कि किसान कॉरपोरेट कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे। मंडी समितियां खत्म हो जाएंगी। किसानों को निजी मंडियों में जाना पड़ेगा। सरकार के प्रस्ताव में कहा गया कि अधिनियम को संशोधित करके यह व्यवस्था की जाएगी कि राज्य सरकार निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू कर सके। किसान को नए विकल्पों के अतिरिक्त पूर्व की तरह मंडी में बेचने तथा समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीदी केंद्र पर बेचने का विकल्प यथावत रहेगा। किसान अब मंडी के बाहर किसी भंडारगृह और कोल्ड स्टोरेज से या अपने खेत से भी फसल बेच सकेगा।

2. किसानों को आशंका है कि अपनी उपज समर्थन मूल्य पर सरकारी एजेंसी के माध्यम से बेचने का विकल्प समाप्त हो जाएगा और समस्त कृषि उपज का व्यापार निजी हाथों में चला जाएगा।  प्रस्ताव में कहा गया  है कि केंद्र सरकार एमएसपी की खरीदी व्यवस्था के संबंध में लिखित आश्वासन देगी।

3. व्यापारी के पंजीकरण नहीं होने के कारण बाजार में किसानों को धोखा होने की आशंका बढ़ गई है। नए कानून में कहा गया है कि किसान को विपणन के अधिक विकल्प प्रदान करने की दृष्टि से पैन कार्ड के आधार पर व्यापारी को कृषि व्यापार करने की व्यवस्था है। नए प्रस्ताव में कहा गया कि कानून के प्रावधानों में संशोधन राज्य सरकारों को इस प्रकार के पंजीकरण के लिए नियम बनाने की शक्ति दी जा सकती है।

 4.  नए कानून में कृषि विवाद को निबटाने का अधिकार एसडीएम और डीएम को है। किसानों को भय है कि उन्हें न्याय नहीं मिलेगा। एसडीएम और डीएम वही करेंगे जो सरकार के हित में होगा। किसानों ने विवाद समाधान के लिए सिविल कोर्ट में जाने का विकल्प मांगा था। सरकार का पक्ष यह है कि त्वरित न्याय के लिए यह व्यवस्था की गई थी ताकि 30 दिन के भीतर उन्हें न्याय मिले। प्रस्ताव में कहा  गया कि शंका समाधान करते हुए अतिरिक्त सिविल कोर्ट में  जाने का विक्लप भी दिया जा सकता है।

5. आशंका जताई जा रही है कि किसानों की भूमि पर पूंजीपतियों का कब्जा हो जाएगा। किसान भूमिहीन हो जाएंगे। नए कानून में  करार खेती की व्यवस्था की गई है। नए प्रस्तावों में कहा गया है कि जब तक राज्य सरकारें रजिस्ट्रीकरण की व्यवस्था नहीं बनाती हैं तब तक सभी लिखित करारों की एक प्रतिलिपि करार पर हस्ताक्षर होने के 30 दिन के भीतर संबंधित एसडीएम कार्यालय में उपलब्ध कराने हेतु उपयुक्त व्यवस्था की जाएगी।
                                                                                                                    - तरुण कुमार कंचन

Monday 7 December 2020

किसान आंदोलन : शक और भ्रम

 

किसानों के समर्थन में  अवार्ड लौटाने की घोषणा करते खिलाड़ी


भारत सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसानों में उबाल है। एक पखवाड़ा होने को है और किसान खेतों को छोड़ सड़क पर हैं। अन्नदाता व्याकुल है। वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। राजनीतिक पार्टियां उछल-कूद कर रही हैं और अपना भविष्य तलाश रही हैं। इसमें कोई गड़बड़ी नहीं है। दुखद यह है कि हमारे अन्नदाता खेतों के बाहर हैं। खरीफ के साथ रबी फसल भी खेतों में लहलहाने लगी है और देखनेवाला कोई नहीं है। गन्ने का पेराई सत्र चल रहा है। गन्ना खेतों में है। रस सूख रहा है। पंजाब में किसान ट्रेनों के परिचालन को बाधित कर रखा है। अब तक करोड़ों का वारा-न्यारा हो चुका है। इसके बाद 8 दिसंबर को किसानों का भारत बंद है।  
यह सब एक अच्छे लोकतांत्रिक देश की खुबियां हैं। इस पर हमें गर्व है  कि यहां के नागरिकों के पास यह अधिकार है कि अपनी चुनी सरकार के समक्ष नाराजगी और गु्स्सा जता सकते हैं। किसान भी यही कर रहे हैं। सरकार और हमारे अन्नदाता दोनों अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं हैं। किसान सड़क पर धूल फांक रहे हैं और सरकार बातचीत का प्लेटफॉर्म खोल रखा है।  इसके बाद भी सुलह का रास्ता नहीं निकला। स्पष्ट है किसान आंदोलन शक और भ्रम के भंवर में फंस गया है। दोनों के बीच शब्दों का तालमेल नहीं है। किसान को कानून लिखित दस्तावेज चाहिए और सरकार आश्वासन का पुलिंदा थमा रही है।  


भ्रम की स्थित यह है कि जिन बिलों को केंद्र सरकार किसानों के लिए वरदान बता रही है उन्हीं कानूनों के खिलाफ किसान सड़क पर हैं। किसानों को सबसे ज्यादा भय इस बात को लेकर है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था कहीं खत्म न हो जाए। इसके लिए किसान सांवैधानिक व्यवस्था चाहते हैं।  उनका कहना है कि डॉ स्वामीनाथन द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले के मुताबिक उनकी फसलों का उचित और लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त हो। मंडी में उनके उत्पादन का भाव किसी भी कीमत पर समर्थन मूल्य से कम न हो। इसमें गड़बड़ी करनेवालों के खिलाफ दंड का प्रावधान भी हो। इसके साथ किसान सभी फसलों की शत-प्रतिशत सरकारी खरीद की गारंटी भी चाहते हैं।


कृषि कानून के माध्यम से सरकार ने किसानों को यह अधिकार दिया है कि वह अपनी उपज मंडी के बाहर भी बेच सकते हैं। स्पष्ट है कि मंडी के आढतियों के चंगुल से किसान को मुक्ति मिलेगी। दूसरी ओर किसानों को यहां शक है कि इस कानून से कृषि उपज मंडी समिति को खत्म कर दिया जाएगा। किसान बाजार में जाएंगे। साहूकारों  और उद्यमियों के जाल में  फंस जाएंगे। कृषि कार्य भी शिक्षा की तरह पैसेवालों के लिए ही संभव होगा।
किसानों की सबसे खराब स्थिति फसल बीमा को लेकर है। किसानों का आरोप है कि फसल बीमा के नाम पर किसानों से ठगी हो रही है। उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है बल्कि बीमा कम्पनी इसका लाभ उठा रही है। किसानों का कहना है कि फसल बीमा योजना में चोरी और आगजनी को भी शामिल किया जाए। प्रीमियम का भुगतान सरकार करे।


नए कानून में एक बिल कांट्रैक्ट फार्मिंग का है। इसके तहत किसान किसी विवाद को लेकर कोर्ट नहीं जा सकेंगे। कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने की स्थिति में एसडीएम का आदेश मान्य होगा। विवाद से संबंधित अपील जिलाधिकारी के यहां होगी। दूसरी ओर किसानों को डीएम और एसडीएम पर विश्वास नहीं है। उन्हें लगता है कि इन दोनों पदों पर बैठे लोग सरकार की कठपुतली की तरह होते हैं। वे लोग वही करेंगे जो वहां की सरकार चाहेगी। सरकार के लिए किसानों से ज्यादा महत्वपूर्ण कंपनियां होती हैं जो चुनाव लड़ने के लिए चंदा देती हैं।
किसानों का कहना है कि सरकार किसान हितैषी है तो किसानों को आत्महत्या से रोकने के लिए कोई कानून क्यों नहीं बनाती है। भारत की शर्मनाक स्थिति यह है कि सरकारी रिकार्ड के अनुसार 10 साल में  तीन लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। यह सिलसिला आज भी चल रहा है। आत्महत्या करनेवाले किसानों के परिवार के पुनर्वास के लिए सरकार क्या कर रही है।  सरकार किसानों के लिए पेंशन देने पर क्यों नहीं सोच रही है। क्या इसके लिए कानून नहीं बन सकता है। 60 साल के बाद किसानों को कम से कम 5 हजार रुपए पेंशन की व्यवस्था हो।
                                                                                                       -तरुण कुमार कंचन

अपशगुन माने जाते थे जगतगुरु रामभद्राचार्य Jagatguru Rambhadracharya was considered a bad omen

जो बालक बचपन में अपशगुन बन गया था। शादी विवाह में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता था। अपने लोग भी साथ नहीं ले जाते थे। आज पूरे दे...