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Saturday 4 March 2023

ब्राह्मण भोज में संख्या का रखें ध्यान Keep in mind the number in Brahmin feast (bhoj)


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        सनातन संस्कृति में ब्राह्मण भोजन के बिना देवकार्य और पितृकर्म पूरा नहीं हो सकता है। बल्कि कह सकते हैं कि ऐसा करना अनिवार्य है। अब सवाल उठता है कि किस तरह के ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए? कितने ब्राह्मण भोज में शामिल हों?

परम आदरणीय ब्राह्मणों को ही बुलाएं

इतना तो सच है कि ब्राह्मण भोजन में उन्हें ही आमंत्रित करें जो आपके परम आदरणीय हों। आप उनका सम्मान करें और वह आपके सम्मान का ख्याल रख सकें। इससे देव भी प्रसन्न होते हैं और पितरों को तृप्ति मिलती है। इस कारण मनु ने स्पष्ट कहा है कि देवकार्य हो या पितृकर्म उसमें ब्राह्मणों की संख्या कम रखें।


तीन या दो ब्राह्मण ही बुलाएं

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द्वौ दैवे पितृकार्ये त्रीनेकैकं उभयत्र वा। 

भोजयेत्सुसमृद्धोऽपि न प्रसज्जेत विस्तरे।।

अर्थात देवकार्य में दो, पितृश्राद्ध में तीन या दोनों में एक-एक ब्राह्मण को भोजन पर बुलाएं। अधिक ब्राह्मण को भोजन कराने में सक्षम होने के बाद भी हमें इससे बचना चाहिए।


स्वामी दर्शनानंद जी का भी इस संबंध में टिप्पणी है कि देवकर्म में एक और पितृकर्म में दो ही ब्राह्मण को भोजन करावे। लोगों को इन अवसरों पर अत्यन्त खर्चीली व्यवस्था नहीं करनी चाहिए।


ज्यादा ब्राह्मण बुलाने से कार्य में बाधा संभव

                  सत्क्रियां देशकालौ च शौचं ब्राह्मणसंपदः।

               पञ्चैतान्विस्तरो हन्ति तस्मान्नेहेत विस्तरम् ।।

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अर्थात भोज में ब्राह्मणों की संख्या बढ़ाने से श्राद्ध कार्य के जो पांच आवश्यक अंग हैं - संस्कार, देश, काल, पवित्रता और ब्राह्मणत्व को साधने में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिए सामर्थ्यवान होने के बाद भी लोगों को ब्राह्मण भोज में संख्या नहीं बढ़ानी चाहिए।


पितरों का कर्ज चुकाने का प्रयास

 पितृपक्ष में श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध करके हम पितरों के कर्ज को चुकाने का प्रयास करते हैं. मान्यता यह भी है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है। हालांकि इसके खास नियम हैं। विदाई के समय दान-दक्षिणा देने का भी विधान है।


ब्राह्मण भोजन में क्या हो और क्या न हो

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ब्राह्मण के लिए भोजन का मतलब होता है पवित्रता और शुद्धता।  हम कह सकते हैं कि भोजन ऐसे बनना चाहिए जिसमें भूलकर भी लहसुन, प्याज का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मान्यता के अनुसार दक्षिण को पितरों की दिशा माना गया है।.कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितर दक्षिण  दिशा से पृथ्वी पर आते है। ऐसे में ब्राह्मण को भोजन हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कराना चाहिए।


- तरुण कुमार कंचन





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