बिहार में जाति गणना हो रही है। यह सर्वविदित है कि ब्राह्मणों की संख्या कम है।लेकिन, क्या आपने कभी विचार किया कि ब्राह्मणों की संख्या कम क्यों है? शायद नहीं। आज हम तलाश करते हैं अतीत और इतिहाम के पन्नों में इसका जवाब। समय-समय पर ब्राह्मण को परिभाषित करने की कोशिश की गई है।
ब्राह्मण सनातन धर्म का प्रमुख हिस्सा
यह सच है कि ब्राह्मण सनातन धर्म का प्रमुख हिस्सा रहा है। सनातन धर्म में मूल रूप से चार वर्णों -ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की बात आती है। यह हमारी वैदिक व्यवस्था है यानी अनादि काल से चला आ रहा है। ऐसी स्थिति में देखें तो सभी की जनसंख्या बराबर होनी चाहिए। मगर ब्राह्मण कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत से कम ही है।
कर्म से ही वर्ण तय
सनातन धर्म में कर्म से ही वर्ण तय होता था। हमारे पुराणों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, शुद्र होने बाद भी शील और ज्ञान की बदौलत ब्राह्मण बन गए। उन्हें आचार्य पद पर भी सुशोभित किया गया। यास्क मुनि ने कहा था:-
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विज ।
एक पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।
यानी जन्म से हर व्यक्ति शूद्र होता है। संस्कार से द्विज बनते हैं। वेदों के अध्ययन-अध्यापन से विप्र हो सकते हैं , लेकिन ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म यानी सबकुछ (ईश्वर से अंतिम सत्य तक) जान ले। हम कह सकते हैं कि ईश्वर को जानने वाला ही ब्राह्मण है।
भाष्यकार पतंजलि ने भी कहा था
विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मणकारकम्।
विद्यातपोभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥
अर्थात- ”विद्या, तप और ब्राह्मण कुल में जन्म ब्राह्मण होने का प्रमाण है। पर जो विद्या तथा तप से शून्य है वह ब्राह्मण पूज्य नहीं हो सकता।
सभी जीवों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण
महर्षि मनु ने पवित्रता को ही ब्राह्मण का प्रमाण माना है। उन्होंने कहा :
विधाता शासिता वक्ता मो ब्राह्मण उच्यते।
तस्मै नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गिरमीरयेत्॥अर्थात शास्त्रों को रचनेवाला और सत्कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, शिष्यादि की ताडनकर्ता, वेद का वक्ता और सभी जीवों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण कहलाता है। इसलिए उनके लिए कोई अनुचित शब्द का प्रयोग नहीं हो ।
न ब्राह्मणं परीक्षेत दैवे कर्मणि धर्मवित।
पित्र्ये कर्मणि तु प्राप्ते परीक्षेत प्रयत्नतः।।
अर्थात धर्म को जाननेवाले पुरुष देवकर्म में ब्राह्मण की परीक्षा न करें। हालांकि पितृ कर्म में ब्राह्मण के आचार, विचार , ज्ञान और आचरण की परीक्षा जरूर करें।
ये स्तेनपतितक्लीबा ये च नास्तिकवृत्तय:।
तान् हव्यकव्योर्विप्राननर्हान् मनुरब्रवीत् ।।
अर्थात जो चोर हों, पतित हों, नपुंसक हो, नास्तिक हों - वे ब्राह्मण हव्य-काव्य के योग्य नहीं होते हैं।
हम कह सकते हैं कि ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी पवित्रता, कठिन तपस्या, वेद अध्ययन से च्यूत होने से उनका वर्ण अधम होता चला गया और ब्राह्मणों की संख्या घटती गई।
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