किसानों के लिए जमीन जान से ज्यादा प्यारी है। यही कारण है कि पिछले 26 सितंबर से किसान लगातार दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। उन्हें आशंका है कि भारत सरकार के नए कृषि कानूनों से उनकी जमीनें पूंजीपतियों की जागीर न बन जाए। आशंका है कि उन्हें बीच बाजार में न लूट ले। हो सकता है कि ये आशंकाएं निर्मूल हों। हो सकता है कि ये आशंकाएं राजनीति के तहत फैलाई गई हों, मगर सच यह है कि देशभर में किसान और उनका परिवार भारत सरकार के नए कानूनों के खिलाफ सड़क पर है। पूस की रात में भी सड़क पर सो रहे हैं। किसान बीमार हो रहे हैं और उनकी जानें भी जा रही हैं। भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मल्लिक ने बताया कि आंदोलन के दौरान विभिन्न कारणों से 50 किसानों की जान जा चुकी है। इसलिए, प्रधानमंत्री जी मान जाइये, किसानों की बात सुन लें।
विवादित कानून को खत्म होना चाहिए
प्रधानमंत्री जी, यह सच है कि जिस दिन इस कानून को संसद ने पास किया था उसी दिन से विवाद भी पैदा हो गया। आपकी मंत्री हरसिमरत कौर ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भी आप सचेत नहीं हुए। दो दिनों से बारिश और ओले पड़ रहे हैं फिर भी देश के किसान अनुशासित होकर सड़क पर आपके पुनर्विचार का इंतजार कर रहे हैं। बहुत ही शालीन अपनी बात आपकी सरकार के समकक्ष रखा है। उन्हें इत्मीनान करिए कि उनके साथ कोई अन्याय नहीं होगा और न ही उनकी जमीन पर किसी की कुदृष्टि पड़े। ये वे लोग जो खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। आप याद करिए उस समय को जब दुनिया आर्थिक मंदी से परेशान थी। सारे कॉरपॉरेट सेक्टर गिर रहे थे और परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था आपके देश को संभाल लिया। फिर कृषि में कौन ऐसा परिवर्तन हो जाएगा जो किसानों को उद्यमी बना देगा।
रातोंरात बदलाव संभव नहीं
यह सच है कि आप बदलाव चाहते हैं। इसका कतई यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि एक रात में सब कुछ बदल जाएगा। प्रथाएं हमारे यहां परंपरा से निकली हैं और उसे किसी भी स्थिति में खत्म करना संभव नहीं है। अगर ऐसा होता तो देश में अब तक छूआछूत और जाति-पाती की व्यवस्था खत्म हो गई होती। इसके खिलाफ आज से कानून नहीं है। हालांकि समाज अब सब स्वीकार करने लगा है। इसलिए कोई भी कानून भारतीय मानसिकता को तत्क्षण नहीं बदल सकता है। आपने एक बार ही तीन कानून बनाकर कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाने की कोशिश की। आपने इसके लिए देश के किसानों को तैयार नहीं किया था। देशव्यापी विमर्श भी जरूरी है। विभिन्न राज्यों की सहमति भी आवश्यक है।
जिद और आग्रह में 50 किसान स्वर्ग सिधार गए
प्रधानमंत्री जी, यह निश्चित मान लीजिए कि आपको अपने कानून से पीछे हटना पड़ेगा अन्यथा जिद और आग्रह के बीच सिर्फ रार बचेगा। अनुशासित किसानों का धैर्य जवाब देने लगा है। वे निराश होने लगे हैं। किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने लगी है। बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। कोरोना जैसी महामारी के बीच भी वे जत्थों में रह रहे हैं जहां कोविड -19 के वायरस की कुदृष्टि कभी भी पड़ सकती है और ऐसा हुआ तो संभाले नहीं संभलेगा। वे सभी दूर-दूर से पहुचे किसान हैं। सड़क पर रहकर बीमार पड़ रहे हैं। रोज मौत की तादाद बढ़ रहे हैं। आंदोलनरत 50 से अधिक किसानों की मौत विभिन्न कारणों से हो गई है। हर दिन सीमापर अनहोनी घटनाएं घट रही हैं। इसके बावजूद किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं।
अन्नदाताओं की मौत की झड़ी
रविवार तो बहुत ही हृदय विदारक रहा। एक की दिन में तीन-तीन किसानों की मौत हो गई। कुंडली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में हिस्सा लेने आए दो पंजाब निवासियों बलबीर सिंह गोहाना और निर्भय सिंह की मौत हो गई है। युधिष्ठर सिंह नामक एक किसान को दिल का दौरान पड़ने के बाद नाजुक हालत में पीजीआई चंडीगढ़ भेजा गया है। वहीं टिकरी बॉर्डर पर जमे किसानों में से एक जींद निवासी जगबीर (66) की शनिवार की रात मौत हो गई। मौत का कारण ठंड से ह्रदय गति रूकना बताया गया है। उत्तरप्रदेश-दिल्ली की सीमा के निकट यूपी गेट पर मौजूद एक किसान की शुक्रवार की सुबह मौत हो गई। उसका नाम गलतान सिंह तोमर (57) निवासी बागपत जिला का था।बताया जाता है कि अत्यधिक ठंड होने के कारण तोमर की मौत हुई। यूपी गेट पर चल रहे किसान आंदोलन में शनिवार को रामपुर के रहने वाले एक किसान का शव मोबाइल टॉयलेट में फंदे से लटका हुआ मिला। मृतक के पास से गुरुमुखी में लिखा एक सुसाइड नोट भी मिला। जिसमें मृतक ने कृषि कानून वापस ना होने पर आत्महत्या करने की बात लिखी है। इसी तरह आंदोलन में शामिल कई किसानों की मौत हो चुकी है।
अब तक हो चुकी इन किसानों की मौत- गुरजंत सिंह (60), बिछौना, मानसा गुरबचन सिंह (80), भिंदर खुर्द, पंजाब लखबीर सिंह (57 ), पंजाब मेवा सिंह (48 ), खोटे गाँव , पंजाब जगराज सिंह (57 ), कादयान, पंजाब मेघराज बावा (70 ), गोबिंदपुरा,संगरूर लभ सिंह (65 ), संगरूर कप्तान दिलबर हुसैन (69 ), रोपड़ हरबान सिंह (62 ), पटियाला जोगिन्दर सिंह (54 ), तरन तारण गुरमेल कौर (70), संगरूर ठंड से मरने वाले किसान- गज्जन सिंह (55 ), खातरा गाँव लुधियाना गुरजंत सिंह, मानसा अजय मोरे (32 ), गुरप्रीत सिंह (32 ), गोपालपुर, लुधियाना मुख्तियार सिंह (62 ), किशनगढ़, मानसा वज़ीर सिंह (70 ), किशनगढ़, मानसा धन्ना सिंह (45 ), मानसा जनक राज (57 ), धनौला, बरनाला बलजिंदर सिंह (32 ), झम्मात, लुधियाना।
अचानक किसान स्टार्ट अप कैसे बन जाएं
आपको याद होगा आपने किसानों से दोगुनी आय कराने का वादा किया था। इस मामले में आपने चार बातें कच्चे माल की लागत कम करना, उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करना, फसलों की बर्बादी रोकना और आमदनी के वैकल्पिक स्रोत सृजित करना कहा था। किसान भी आपसे यही माग रहे हैं। उन्हें अपनी जमीन पर हक चाहिए। अपनी फसल के लिए किसान उचित मूल्य चाहते हैं और यह उनका वैधानिक अधिकार होना चाहिए। प्रधानमंत्री से आप अचानक किसान को अटार्ट अप बनाने की सोच लिए। यह उन्हें कतई स्वीकार नहीं है। किसानों को जो सपने आपने दिखाए हैं उसे प्राप्त करने के लिए वार्षिक कृषि विकास दर 14.86 फीसदी होनी चाहिए। इसे प्राप्त करने टेढ़ी खीर होगी।
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जब नीतीश कुमार थे कृषि मंत्री
प्रधानमंत्री जी, आपको पता होगा जब नीतीश कुमार देश के कृषि मंत्री बनाए गए थे तब उन्होंने किसानों और कृषि के विकास के लिए एक रोडमैप तैयार किया था। 28 जुलाई 2002 को केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नीतीश कुमार ने नई राष्ट्रीय कृषि नीति संसद में पेश किया था। उस समय उन्होंने कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4 प्रतिशत की विकास दर निर्धारित की थी। वह भी दो दशकों के लिए किया गया था। ऐसा कहा गया कि पहली बार आजादी के पांच दशक बाद कृषि के लिए अलग से कोई कानून बना है।कृषि नीति में भूमि सुधार के माध्यम से गरीब किसानों को भूमि प्रदान करना, कृषि जोतों का बढाना, कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ाना, किसानों को फसल के लिये कवर प्रदान करना, किसानों के बीजों के लेन-देन के अधिकार को बनाये रखना जैसे लक्ष्यों को निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त मुख्य फसलों की न्यूनतम मूल्य नीति को जारी रखने का आश्वासन दिया गया है। फिर क्या हुआ कि अचानक कृषि कानून बना कर किसानों पर थोप दिया गया।
अंतर मंत्रालय समिति की रिपोर्ट पर अमल क्यों नहीं
अप्रैल 2016 की बात है किसानों की आय को दोगुना करने के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया गया था। उस समिति ने सितंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट कृषि मंत्री को सौंप दी थी। उसमें किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक जबर्दश्त प्रतिमान के प्रस्तुत किया गया था। उसमें बताया गया था कि किसान अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग करे और फसल सघनता को बढ़ाए। नकदी और अधिक कीमतवाली फसलों को उगाने पर ध्यान दे। उसमें यह भी बताया गया था कि किसानों को खेती में लागत कम करनी होगा। इसके साथ जोखिम प्रबंधन और सूखा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा। उस दौरान सबसे बड़ी बात यह कही गई थी कि राज्य सरकारों के माध्यम से मंडियों में सुधार की जाएगी। बिचौलियों से किसानों को बचाया जाएगा। अब क्या हो गया कि नए कानून में समानांतर मंडी खड़ी करने की बात कही जा रही है। कहीं भी किसान मंडी लगा सकता है।
- तरुण कुमार कंचन
आपके विचार आमंत्रित हैं।
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