रस्म पकड़ी के बाद आशीर्वाद लेतीं उर्वशी
आन, बान और शान की प्रतीक पगड़ी जिम्मेदारियों का भी अहसास कराता है। खासकर तब जब पिता के अवसान पर रस्म की पगड़ी बांधी जाती है। मेरठ में रुंधे गले एक बेटी ने पिता के रस्म की पग़ड़ी अपने सिर बांधी। हालांकि अब यह नई बात नहीं रही। नीचे कुछ उदाहरण देखते हैं फिर समझते हैं कि अन्य मामलों से मेरठ का यह वाकया अलग कैसे है।
- अगस्त 2012 की बात है। जयपुर में ज्योति नाम की एक बेटी ने पिता की पगड़ी अपने सिर ले ली। ज्योति अपने माता-पिता की अकेली औलाद है।
- नवंबर 2016 में मेरठ में ऐसी ही एक घटना हुई। आकाशवाणी दिल्ली में मेरठ के नीरज गोयल डिप्टी डायरेक्टर थे। कोई 46 वर्ष उनकी अवस्था रही होगी। तब मेरठ के रोहटा रोड पर गगन एन्क्लेव के सामने सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई थी। उस समय उन्हें दो बेटियां थीं। बड़ी बेटी रितिका 11वीं में पढ़ती थी। उसे ही जिम्मेदारियों से भरी हुई रस्म पगड़ी बांध दी गई थी।
- नवंबर 2020 की घटना है। एक व्यक्ति का सड़क हादसे में निधन हो जाता है। उन्हें कोई बेटा नहीं था। उन्हें चार पुत्रियां थीं। चारों बेटियों ने मिलकर पिता की अर्थी को कंधा दिया। अंतिम संस्कार करवाया। सभी रस्मों को पूरा किया। अंत में जब रस्म पगड़ी की बारी आई तो पुरुष की खोज होने लगी। इसी बीच बड़ी बेटी सीमा मारवाल रस्म पगड़ी के लिए आगे बढ़ी। नाते-रिश्तदारों ने उसे हंसी-खुशी पिता की पगड़ी बंधवा दी।
- मार्च 2021 की बात है। राजस्थान के सीकर जिले में श्रीमाधोपुर में बेटी को रस्म की पगड़ी बांधी गई थी। सड़क हादसे में एक व्यक्ति का निधन हो गया था। उन्हें चार बेटियां थीं। उनमें सबसे बड़ी बेटी सुमन को रस्म पगड़ी बांधी गई थी।
- मई 2021 में सीकर के दांतारामगढ़ में भंवर लाल का निधन हो गया था। उन्हें तीन पुत्रियां थीं। कोई बेटा नहीं था। इस कारण संस्कार के सारे काम बेटियों को करना पड़ा। अंत में जिम्मेदारियों की रस्म पगड़ी बड़ी बेटी पिंकी ने बांधी।
उक्त कुछ दृष्टांत हमारे सामने हैं। जो बताता है कि बेटियां भी जिम्मेदारों का बोझ उठा सकती है। हर विषम परिस्थितियों से लड़ सकती है। आगे बढ़ कर बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी को पूर्ण कर सकती है। मेरठ में आज जो वाकया हुअ है वह उक्त उदाहरणों से अलग है।
भाइयों के रहते हुए भी बहन ने बांधी पिता की पगड़ी
पथौली सरूरपुर के रहनेवाले शिक्षक और किसान हरेंद्र सिंह की आज तेरहवीं थी। सम्प्रति हरेंद्र सिंह का परिवार मेरठ स्थित तुलसी कॉलोनी में रहता है। हरेंद्र सिंह को तीन बेटे और दो बेटियां हैं। परिवार शिक्षित और सम्पन्न है। हरेंद्र सिंह को दो बेटियां उर्वशी और एश्वर्या हैं जबकि तीन बेटे विकास, वरुण और विवेक हैं। उर्वशी चौधरी मेरठ की जानी-मानी एडवोकेट और समाज सेविका हैं और ऐश्वर्या प्रधानाचार्य हैं। एश्वर्या छोटी बहन है। विकास, वरुण और विवेक तीनों छोटे हैं और शिक्षक हैं। यह परिवार प्रगतिशील है। तीनों भाइयों ने पिता की तेरहवीं पर अपनी बड़ी बहन उर्वशी के सिर पर रस्म की पगड़ी बांधी और घर का मुखिया बनाया। पश्चिमी यूपी में रुढ़ीवादी समाज होते हुए भी यह परिवार क्रांतिकारी फैसला लिया। मान्यता है कि बेटियों की शादी होने के बाद उसका कुल और गोत्र अलग हो जाता है।
अपने फैसले से खुश है परिवार
हरेंद्र सिंह के निधन के बाद परिवार में मुखिया का चुनाव होना था। नाते-रिश्तेदारों और ग्रामीणों को उम्मीद थी कि हरेंद्र सिंह के तीन बेटों में से किसी एक के सिर पिता की पगड़ी बांधी जाएगी। आज जब पितृ पक्ष का पहला दिन चल रहा थ तो हरेंद्र सिंह के घर पर इतिहास रचा जा रहा था। सनातनी मान्यताओं के अनुसार सोलह संस्कारों में से अंतिम संस्कार तेरहवीं में रस्म पगड़ी का वक्त आया तो पूरे परिवार ने बदलाव की पहल की। घर की बड़ी बेटी उर्वशी चौधरी को परिवार का मुखिया घोषित करते हुए उनके सिर पर पिता की पगड़ी बांधी। इस मौके पर चाचा विजेंद्र पाल सिंह, जितेंद्र सिंह, फूफा निंरजन शास्त्री, रामपाल मांडी, जयविंदर रावत, रणधीर शास्त्री, एसके शर्मा, अंकुश चौधरी और गांव के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। पुरोहित मंत्रोच्चार कर रह रहे थे। बड़े-बुजुर्ग आशीर्वाद दे रहे थे और तीनों भाई बड़ी बहन के सिर पर जिम्मेदारियों की पगड़ी बांध रहे थे। माहौल गमगीन था पर समय परिवर्तन का गवाह भी बन रहा था।
बेटियां बेटों से कम नहीं है
जब संस्कार में बदलाव हो रहा था। कई ग्रामीण हस्तियां और रिश्तेदार उस वक्त वहां मौजूद थे। प्रसिद्ध लेखक ओमवीर तोमर ने कहा कि हरेंद्र सिंह का परिवार बेटे और बेटी में फर्क नहीं करता। उन्होंने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ऐसा ही समाज में होना चाहिए।
उत्तरदायित्व की प्रतीक पगड़ी
पगड़ी उसी व्यक्ति को सौंपा जाता है जो परिवार का मुखिया होता है। यह सम्मान का भी प्रतीक है और उत्तरदायित्व का भी। जब किसी परिवार में मुख्य व्यकित का निधन हो जाता है तो किसी पुरुष सदस्य के सिर पर पगड़ी बांधी जाती है।
पति और ससुराल से उर्वशी को मिला साथ
उर्वशी ने बताया कि उनके पिता ने कभी भी बेटा और बेटी में फर्क नहीं किया। दोनों को आगे बढ़ने के लिए बराबर का मौका दिया। हम बचपन से ही इस संस्कार में बढ़े हैं। पिताजी ने हमेशा हमारी पढ़ाई-लिखाई पर जोर दिया। संयोग अच्छा रहा कि शादी के बाद पति ने भी उन्हें हर फैसले में साथ दिया। अब ससुराल वालों से भी हर काम में पूरा समर्थन मिलता है।
शास्त्र बेटे-बेटियों में फर्क नहीं करता
जयपुर में बेटी को रस्म पगड़ी पहनने के बाद यह विवाद चला था कि श्राद्धकर्म पुरुषों को करना चाहिए। इस कारण रस्म पगड़ी पर भी बेटों का अधिकार है। तभी जयपुर के विद्वान केके शर्मा ने स्पष्ट कर दिया था कि किसी ग्रंथ में ऐसा नहीं है कि सिर्फ बेटा ही श्राद्धकर्म करेगा। शास्तों में कहीं भी बेटे और बेटियों में विभेद नहीं किया गया है। इस कारण पिता की रस्म पगड़ी पर बेटियों का भी पूरा है।
खुशियों का भंडार है बेटियां।
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